समय और विकल्‍प के अभाव में छाबड़ा की नियुक्ति

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नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
रायपुर। आईपीएस आनंद छाबड़ा की खुफिया चीफ के पद पर फिर से वापसी कैसे और क्‍यूं हुई यह जानने के प्रयास में छत्‍तीसगढ़ की आईपीएस-आईएएस लॉबी लगी हुई है। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि समय और विकल्‍प के अभाव में डॉ.छाबड़ा एक बार फिर से इंटेलिजेंस चीफ बनाए गए हैं।

उल्‍लेखनीय है कि सोमवार शाम को राज्‍य शासन ने अचानक प्रदेश के दो आईपीएस अफसरों का तबादला कर दिया था। अब तक खुफिया प्रमुख का दायित्‍व संभाल रहे आईपीएस अजय यादव इस जिम्‍मेदारी से मुक्‍त कर दिए गए।

आईपीएस यादव को प्रदेश की बिलासपुर रेंज का आईजी पदस्‍थ करते हुए आईजी बिलासपुर रहे डॉ.आनंद छाबड़ा (2001) वापस बुला लिए गए। एक तरह से इसे गंभीर मसला माना जा रहा है। प्रदेश विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। ठीक चुनाव के पहले इस तरह से खुफिया चीफ बदलने की कोई परंपरा नहीं रही है।

इसके बावजूद आईपीएस अजय यादव (2004) बदल दिए गए। खुफिया चीफ के नाते जिस यादव के पास पूरे प्रदेश की आईपीएस-आईएएस लॉबी सहित प्रशासनिक-राजनीतिक घटनाक्रम की निगरानी की जिम्‍मेदारी हुआ करती थी वह अचानक से महज एक रेंज के आईजी बनाकर क्‍यूं और कैसे भेजे गए इस पर अपने अपने तर्क हो सकते हैं।

उल्‍लेखनीय है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पांचवी मर्तबा गुप्‍त वार्ता का प्रभार बदला गया है। जब कांग्रेस सरकार में आई थी तब आईपीएस अशोक जुनेजा के हाथ में दायित्‍व था। उनसे यह प्रभार लेकर आईपीएस हिमांशु गुप्‍ता को सौंपा गया था।

करीब ढाई साल तक छाबड़ा गुप्‍त वार्ता के प्रमुख रहे। उनकी नियुक्ति 26 मई 2020 को हुई थी जो कि नवंबर 2022 तक चली। उस साल 20 नवंबर को डॉ.छाबड़ा रेंज आईजी दुर्ग बना दिए गए। 28 जुलाई को छाबड़ा दुर्ग से बिलासपुर रेंज आईजी के पद पर पदस्‍थ हुए थे।

अगस्‍त महीना का अंत आते आते वह वापस बिलासपुर से खुफिया चीफ बनकर रायपुर लौट गए हैं। मतलब बीते नौ महीने में यह आईपीएस छाबड़ा की एक तरह से तीसरी पोस्टिंग है। सरकार ने ठीक चुनाव के समय यदि डॉ.छाबड़ा को गुप्‍त वार्ता का प्रभार सौंपा है तो इसे समय और विकल्‍प की कमी से जोड़कर देखा जा रहा है।

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