भर्ती में अंधेरगर्दी : सिर्फ कोर्ट ही सहारा

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नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
बिलासपुर। छत्‍तीसगढ़ में होने वाली भर्तियां न्‍यायालय की चौखट तक आए बिना पूरी नहीं हो पा रही है। भर्ती में होने वाली अंधेरगर्दी में प्रभावितों के लिए उम्‍मीद की एक किरण न्‍यायालय से ही निकलती है। हाईकोर्ट समय समय पर न्‍याय संगत फैसले देकर प्रभावित होने वाले उम्‍मीदवारों को राहत भी प्रदान करता है।

अभी हाल फिलहाल में ही इस तरह के दो फैसले छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय ने दिए हैं। इन फैसलों से उन उम्‍मीदवारों को उम्‍मीद की थोड़ी सी किरण नजर आई है जो कि निराश हो चुके थे। बिलासपुर उच्‍च न्‍यायालय ने पहले पुलिस उप निरीक्षक भर्ती परीक्षा और बाद में असिस्‍टेंट टीचर भर्ती की अंतिम चयन सूची पर रोक लगाकर प्रभावित होने वाले हजारों अभ्‍यर्थियों को राहत देने का काम किया है।

कल होनी है सुनवाई
उल्‍लेखनीय है कि राज्‍य में 975 उप निरीक्षक पदों पर भर्ती के लिए पुलिस विभाग प्रयासरत है। भर्ती जैसे जैसे आगे बढ़ी वैसे वैसे विवाद भी बढ़ने लगे। इसी माह की 19 तारीख को हाईकोर्ट ने हस्‍तक्षेप किया था।

जस्टिस एनके व्‍यास की सिंगल बैंच ने भर्ती प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी की जांच करने का आदेश पारित किया था। उन्‍होंने भर्ती प्रक्रिया को दुरूस्‍त करने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई (23 अगस्‍त) में प्रकरण को सुनने के पूर्व शासन से जवाब मांगा था।

क्‍या है गड़बड़ी ?
बताया जाता है कि बिना किसी आरक्षण के लिए प्‍लाटून कमांडर जैसे पद पर 400 महिलाएं चुन ली गई। पूर्व सैनिकों को भी 10 फीसदी आरक्षण नहीं मिला। विभागीय उम्‍मीदवार के लिए 5 फीसद आरक्षण तय बताया जाता है जबकि उन्‍हें 4 फीसदी ही आरक्षण दिया गया।

इसी तरह एक जैसे अंक पाने वाले सभी अभ्‍यर्थी साक्षात्‍कार के लिए नहीं चुने गए। 975 पदों में से 97 पद पूर्व सैनिक के लिए आरक्षित बताए गए हैं। 319 पूर्व सैनिक फिजिकल टेस्‍ट में चुने गए जिनकी आयु 40-45 वर्ष के बीच की थी। इन्‍हें भी सामान्‍य अभ्‍यर्थियों की ही तरह फिजिकल टेस्‍ट देना पड़ा और रियायत का कोई लाभ नहीं मिला।

6 हजार 500 पदों पर होनी है भर्ती
अब आते हैं सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर… इस पर भी काउंसिलिग और अंतिम चयन सूची पर हाईकोर्ट से रोक लगाई गई है। दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (भर्ती शैक्षणिक संवर्ग) भर्ती नियम 2019 में किए गए संशोधन को चुनौती देते हुए बीएड की अनिवार्यता को अवैधानिक बताया है। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

डीएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी विकास सिंह, युवराज सिंह सहित अन्य ने एडवोकेट अजय श्रीवास्तव के जरिए याचिका दायर की थी। 4 मई 2023 को सहायक शिक्षकों के तकरीबन 6 हजार 500 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। 10 जून को इसके लिए परीक्षा आयोजित की गई थी। इसमें बीएड और डीएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी शामिल भी हुए।

याचिका में कहा गया है कि राज्‍य की प्राथमिक शालाओं के बच्चों के अध्ययन-अध्यापन के लिए डीएड पाठ्यक्रम में विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। बीएड पाठ्यक्रम में उच्चतर कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाता है। स्कूल शिक्षा विभाग ने नियमों में संशोधन किया है।

इसके अनुसार सहायक शिक्षक की भर्ती के लिए स्नातक और बीएड या डीएड को अनिवार्य योग्यता के रूप में शामिल किया गया है। जबकि, बीएड प्रशिक्षितों को भर्ती में शामिल करना अवैधानिक है क्योंकि, उन्हें हायर सेकेंडरी की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए ट्रेनिंग दी गई है, न कि, प्राइमरी कक्षाओं के लिए।

एडवोकेट अजय श्रीवास्तव मामले में बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस बारे में स्‍पष्‍ट निर्देश हैं। निर्देशों का हवाला देते हुए श्रीवास्‍तव बताते हैं कि राज्य शासन ने अपने ही बनाए मापदंड का भर्ती प्रक्रिया में उल्लंघन किया। प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई के लिए डीएड पाठ्यक्रम में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।

उनके मुताबिक हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों की शिक्षा के लिए बीएड प्रशिक्षार्थियों को विशेषतौर पर प्रशिक्षण दिया जाता है। कक्षा पहली से पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाने वाले सहायक शिक्षक के लिए डीएड अभ्यर्थी ही पात्र होंगे। बीएड अभ्यर्थियों को सहायक शिक्षक बनाने से निचली स्तर की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा।

मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डिवीजन बेंच ने सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बीएड अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग और अंतिम चयन सूची पर अंतरिम रोक लगा दी है। राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

बहरहाल, चुनाव के ठीक पहले भर्ती के ये मामले राज्‍य शासन के लिए परेशानी भी खड़ी कर रहे हैं। विपक्ष इन विषयों पर पैनी निगाहें लगाए हुए हैं। वह पहले से आरोप लगाते रहा है कि भर्ती में न तो व्‍यापमं और न ही राज्‍य की पीएससी नियमों का पूरी तरीके से पालन कर रही है। अब हाईकोर्ट के निर्देश कहीं न कहीं मामले को सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में विपक्ष इस्‍तेमाल करने में लगा हुआ है।

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