ओपी की शिकायत लेकर राजभवन पहुंचे आदिवासी

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रायपुर.

दंतेवाड़ा के आदिवासियों ने पूर्व आईएएस अधिकारी और बीजेपी नेता ओपी चौधरी पर जवांगा में भूमि अधिग्रहण के नाम पर छल एवं षड़यंत्र करने का गंभीर आरोप लगाया है.

चौधरी पर उनकी भूमि हथियाने के लिए उन्हें पुलिस थाने में बंद करवाकर नक्सल मामले में फंसाने की धमकी दिलवाने का भी गंभीर आरोप लगाया है. राज्यपाल अनुसूईया उइके को ओपी चौधरी के खिलाफ सौंपे गए एक ज्ञापन में उक्त बातें लिखी गई है.

उन्होंने कहा है कि छलपूर्वक उनका पट्टा निरस्त किये जाने से वे पिछले पांच साल से कृषि कार्य नहीं कर पा रहे हैं. जिसकी वजह से उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है.

राज्यपाल उईके से आदिवासियों ने प्रत्येक परिवार के सदस्य को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दिलाने, बच्चों को एजुकेशन सिटी में भर्ती करने और उसका नाम जवांगा की जगह उनके गांव के नाम पर करने की गुहार लगाई है.

राजभवन पहुंचे थे ग्रामीण

दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक स्थित ग्राम बड़े पनेडा के ग्रामीणों ने राजभवन में मुलाकात की. उन्हें शिकायती ज्ञापन सौंपा. उन्होंने कहा कि वे उस वन भूमि में लंबे समय से खेती कर रहे थे.

तत्कालीन कलेक्टर रीना बाबा साहेब कंगाले द्वारा यहां 17 आदिवासियों को वन भूमि पट्टा दिया गया था. लेकिन साल 2010-11 में वहां कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने जवांगा एजुकेशन सिटी निर्माण के लिए भूमि खाली करने के लिए कहा,

उन्होंने कहा कि एजुकेशन सिटी बनने पर मैं नौकरी दूंगा. तुम लोगों के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जायेगा और इस भूमि के बदले दूसरी भूमि के पट्टे दिये जाने का वादा किया था.

लेकिन हम लोगों ने भूमि देने से इंकार किया तो कलेक्टर ओपी चौधरी द्वारा थानेदार को बोलकर हम लोगों को गीदम थाने में पूरे दिन भर बैठाकर नक्सली सहयोगी बताकर खूब डराया गया. साथ ही कहा गया कि एजकेशन सिटी बन रही है बनने दो विरोध मत करो नहीं तो जेल भेज देंगे. इससे हम डर की वजह से चुप हो गए.

ज्ञापन में आगे उन्होंने लिखा है

”हम आदिवासियों को दिये वन भूमि के पट्टों की भूमि का उपयोग किसी अन्य कार्य में वैधानिक रूप से से कोई भी नहीं ले सकता क्योंकि दिये गये पट्टों में स्पष्ट उल्लेख है कि इसे अन्तरण नहीं किया जा सकता. इसलिये झूठी कहानी रची गई तथा एक षड्यंत्र रचा गया, जिससे वनभूमि के दिये पट्टे निरस्त कर भूमि एजुकेशन सिटी के लिये उपयोग की जा सके क्योंकि दूसरी कोई भूमि उपलब नहीं थी.”

अपने ज्ञापन में उन्होंने आगे लिखा है कि

” षड़यंत्र के तहत ग्राम बड़े पनेडा के पटवारी चन्द्रसेन नागवंशी को शासन की तरफ से प्रार्थी बनाकर उससे आवेदन बनवाया गया. जिसमें ग्राम बड़े पनेडा की वर्तमान भूमि खसरा नं 105,109,110,141,142 क्रमशः रकबा 1.87 हेक्टेयर, 1.14 हेक्टेयर, 7.8 हेक्टेयर , 3.05 हेक्टेयर 4.95 हेक्टेयर ग्राम बड़े पनेड़ा के लिये संहिता के प्रावधानुसार संधारि निस्तार पत्र के मद (क) इमारती लकडी अथवा इंधन हेतु सुरक्षित, मद (ख) चारे और घास के लिए सुरक्षित और संहिता की धारा धारा 237 के तहत संरक्षित रही है.

उक्त खसरे की भूमि में एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों के नाम दिखाकर उनका वन अधिकार पट्टा निरस्त किये जाने का आवेदन दंतेवाड़ा एसडीएम के पास प्रस्तुत किया. जिसमें जिन्हें वनअधिकार पट्टा दिया गया था उन्हें ही अनावेदक बनाया गया.

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि एसडीएम द्वारा वन अधिकार पट्टा निरस्त करने के लिए की गई कार्रवाई के दौरान न तो उन्हें सूचना दी गई और न ही उन्हें बुलाया गया और उनके पट्टे को निरस्त कर जमीन एजुकेशन सिटी के निर्माण के लिए अधिग्रहित कर ली गई.

11 बिन्दुओं की शिकायत में उन्होंने आगे लिखा है कि ग्राम पंचायत बडे पनेडा के प्रस्ताव की कॉपी जो प्रकरण में लगाई गई है वह भी फर्जी है. ग्राम के किसी भी पंच को यह मालूम नहीं है कि यह बैठक कब हुई तथा प्रस्ताव कब लिया गया. एसडीएम द्वारा ग्राम पंचायत बडे पनेडा के सचिव को बुलाकर प्रस्ताव लिखवा लिया गया.

ज्ञापन में आगे कहा गया है कि कलेक्टर ओपी चौधरी ने उनके पट्टे को निरस्त करने के बाद उन्हें दूसरा पट्टा दिया लेकिन उन पट्टों की भूमि उन्हें आज तक प्राप्त नहीं हुई. यह पट्टा उनके लिए महज कागज का टुकड़ा बनकर रह गया है.

उन्होंने सवाल उठाया है कि उनकी जो भूमि निरस्त की गई है अगर वह जमीन पहले से निस्तार की जमीन थी तो उन्हें फिर उस जमीन के पट्टे कैसे दिये गए.

उस जमीन को एसडीएम द्वारा निस्तार भूमि घोषित कर दिया गया तो उस निस्तार भूमि का उपयोग एजुकेशन सिटी जवांगा के निर्माण में किस नियम के तहत किया गया.

जब वह जमीन निस्तारी की हो गई तो उस जमीन में आधा दर्जन लोगों को फिर से पट्टा कैसे दिया गया. गांव के निस्तारी की जमीन को अन्य मद में तब्दील कर उसका अन्य उपयोग या उपभोग नहीं किया जा सकता.

उन्होंने सवाल किया कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना नहीं हुई. शिकायत में उन्होंने कहा कि एजुकेशन सिटी जवांगा का निर्माण तीन गांवों के मध्य में हुआ है, यह गांव जावांगा, बड़े पनेडा और गीदम है.

क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़े पनेडा की ज्यादा जमीन इस्तेमाल में ली गई है. इसमें बड़े पनेड़ा की 52 एकड़, जावंगा का 22 एकड़ एवं गीदम का 34 एकड़ शामिल है. जबकि राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर में एजुकेशन सिटी जावांगा का नाम लिया जाता है.

इस हेतु हम ग्रामीण लोगों को गुमराह कर प्रशासन जावंगा का नाम हर संस्था में लिखवाया गया. इससे हम ग्रामीण हताश महसूस कर रहे हैं. बड़े पनेडा में कन्या परिसर , पॉलीटेक्निक छात्रावास , कन्या छात्रावास, शासकीय कन्याय शाला एवं छात्रावास, सक्षक-1 बालक छात्रावास, बालिका छात्रावास , डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल , दिव्यांग छात्रावास , एकलव्य कन्या छात्रावास , उप सबरलेशन 11, बी.पी.ओ सेन्टर हैं इनमें जावांगा का ही नाम उल्लेखित है न कि बड़े पनेडा का.

ग्रामीणों ने राज्यपाल से गुहार लगाते हुए कहा कि हमें हमारी भूमि से बेदखल होने के पश्चात् हमें अपनी आजीविका चलाने हेतु काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उक्त भूमि पर वनोपज एवं कृषि से हमारा गुजारा चलता था.

हमारी जीविकोपार्जन वाली महत्वपूर्ण भूमि के एजुकेशन हब में चले जाने के पश्चात हमारा भविष्य काफी दिक्कतपूर्ण हो गया है. अब हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गयी है.

राज्यपाल से गुहार लगाई है कि हम आदिवासियों के साथ षडयंत्रपूर्वक धोखाधड़ी से अधिग्रहित भूमि के एवज में पूर्व में दिये गये आश्वासन के तहत प्रत्येक परिवार से योग्यतानुसार शासकीय नौकरी दिलाई जाए. इसके साथ ही परिवार के बच्चों को एजुकेशन सिटी के प्रत्येक संस्था में भर्ती प्राथमिकता व एजुकेशन सिटी में हमारे ग्राम का नाम उल्लेख किया जाए.

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