छत्‍तीसगढ़

अनूठी है आदिवासियों की संस्कृति और परंपराएं : सुश्री उइके

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रायपुर.

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर देश और प्रदेश के आदिवासी समाज एवं समस्त नागरिकों को हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं.

उन्होंने अपने संदेश में कहा है कि छत्तीसगढ़ देश के उन प्रदेशों में शामिल है, जहां पर करीब 32 प्रतिशत आदिवासी निवासरत हैं, जो अनेकों परम्पराओं को संजोए हुए हैं.

उन्होंने कहा कि इनकी संस्कृति और परंपराएं अनूठी है. आदिवासी समाज ने नदी, नाले, तालाबों, झरनों, पर्वतों, शिखरों, गुफा, कंदराओं, लता, वृक्ष, पशु-पक्षी में भी देवशक्तियों को अवतरित कर उनके प्रति आदर भाव प्रदर्शित किया है..ऐसे भावों के कारण ही आदिवासी समाज सहज रूप से समृद्ध हुआ है.

सुश्री उइके ने कहा कि आज पूरा विश्व कोविड-19 से जूझ रहा है, लेकिन आदिवासी समाज अपेक्षाकृत इससे कम प्रभावित दिख रहा है. इसका कारण उनका जीवन शैली, प्रकृति से उनका संबंध, उनके खानपान में वन उत्पादों का शामिल होना है.

आज भी हमारे वनों में ऐसी जड़ी-बुटियां पाई जाती हैं, जिसके सेवन से हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है. इसे आदिवासी समाज हमेशा से अपने खानपान और नित दिनचर्या में शामिल करते आए हैं, इसलिए उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता सामान्य रूप से अधिक पाई गई है.

राज्यपाल ने कहा कि यदि प्रवासियों को छोड़ दिया जाए तो सामान्य रूप से किसी भी आदिवासी क्षेत्र के गांव में कोविड-19 का प्रभाव नहीं देखा गया है. हमारे आदिवासी समाज के लोग सदैव प्राचीन समय से संस्कृति-परंपराओं एवं प्रकृति के संरक्षक रहे हैं,

उनके मुताबिक इतिहास गवाह है कि समय आने पर वे देश की रक्षा के लिए आक्रमणकारियों के खिलाफ उठ खड़े हुए और बलिदान भी दिया. इस समाज में बिरसा मुंडा, वीर नारायण सिंह, गुंडाधुर, रानी दुर्गावती, रघुनाथ शाह, शंकर शाह, बादल भोई, टंटया भील जैसे महान लोग अवतरित हुए हैं, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दे दी.

इस अवसर पर उन्होंने इन शहीदों को नमन किया है. उन्होंने कहा है कि आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है, उस स्थिति में प्रकृति से जुड़ने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. अतः इन परिस्थितियों में हम सभी को आदिवासी समाज से प्रकृति संरक्षण तथा अन्य परंपराओं को सीखने की आवश्यकता है.

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