बृजमोहन की दोस्‍ती और ढांढ की सलाह सरकार पर भारी…

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इन दिनों राज्‍य में कांग्रेस सरकार को लेकर कौतूहल है. छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले और उनका असर उलट ही दिखाई दे रहा है.

विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्‍याशित जीत के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेतृत्‍व के खुले पंख लोकसभा चुनाव में कतर दिए गए.

इस चुनाव के साथ ही भाजपा को फिर वो ताकत मिल गई जो कुछ महिनों पहले ही कांग्रेस ने उससे छिन ली थी.

प्रदेश में भाजपा वापस 9 लोकसभा सीटें जीत ले गई . . . और बतंगड़ यहीं से शुरु होता है.

सवाल हो रहे हैं कि आखिर कैसे विधानसभा चुनाव में 15 सीटों में सिमट जाने वाली भाजपा ने लोकसभा में 9 सांसद जीता लिए.

. . . और आखिर कैसे 68 सीटों वाली कांग्रेस महज दो सीटें ही जीत सकी? खुद कांग्रेसी इसके लिए अपनी सरकार और प्रदेश कांग्रेस के भटके नेतृत्‍व, तानाशाही रवैये और अतिआत्‍मविश्‍वास को जिम्‍मेदार बता रहे हैं.

इसी बीच निशाने में सरकार के करीबी भी हैं. भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल कांग्रेसी नेताओं के साथ अपनी करीबी के लिए भी जाने जाते हैं.

प्रदेश के मुखिया के साथ उनके याराने के तो अपने ही किस्‍से बताए जाते हैं. दोनों के बीच काफी अच्‍छी छनती है. कई कांग्रेसी भी इसे नहीं पचा पाते.

एक और हैं.. पूर्व मुख्‍य सचिव विवेक ढांढ. कहा जाता है कि वे मुखिया के पांचवें सलाहकार हैं.

उनकी सलाह के बाद ही जिलों में कलेक्‍टर-एसपी की नियुक्ति की जाती है. पुलिस मुखिया से लेकर रायपुर, कोरबा के पुलिस अधीक्षक व जिलाधीश ढांढ की अनुशंसा पर ही पदस्थ हुए हैं ऐसी जनचर्चा है.

वैसे बता दें कि विवेक ढांढ कॉलेज के समय में मुखिया के सीनियर रहे हैं. प्रशासनिक मसलों पर निर्णय के लिए नव अनुभवी मुखिया के लिए कहीं न कहीं अब भी ढांढ सीनियर जैसी ही भूमिका निभा रहे हैं.

इसी दोस्‍ती और सलाह को कांग्रेस सरकार की नाव डूबाने वाला माना जा रहा है.जनचर्चा है कि बृजमोहन और ढांढ की संगत सरकार को महंगी पड़ रही है.

लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान के बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की मुसीबतें और बढ़तीं दिख रही हैं. दिल्‍ली दरबार भी सवाल कर सकता है कि आखिर ऐसा हुआ कैसे?

सवाल दोस्‍तों और सलाहकारों को लेकर भी होंगे.जनचर्चा के मुताबिक एक सवाल अभी हाल फिलहाल राजधानी में हुई प्रदेश स्तरीय बैठक में भी हुआ है.

जनचर्चा बताती है कि प्रदेश प्रभारी सहित राष्ट्रीय सचिवों ने इस पर गौर किया है. दरअसल प्रभारी व सचिवों से प्रदेश के चुनिंदा कांग्रेसियों ने अग्रवाल-ढांढ से मित्रता व सलाह लेने को आत्मघाती बताया था.

जनचर्चा तो यहां तक हुई है कि जिस बृजमोहन के सामने चुनाव नहीं लड़कर महापौर ने लोकसभा की टिकट प्राप्त की उसी बृजमोहन ने अपने खांटी समर्थक पूर्व महापौर को जितवाकर कांग्रेस के मुंह पर तमाचा मारा है.

इसी तरह ढांढ को लेकर भी शिकवा शिकायत जनचर्चा के बताए अनुसार की गई है. संघ समर्थक अधिकारियों को ही ढांढ द्वारा प्रश्रय दिए जाने की शिकायत जनचर्चा में सुनने में आ रही है.

बहरहाल; गधा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या कि तर्ज पर कांग्रेसी कह रहे हैं कि अग्रवाल-ढांढ से बचिए नहीं तो सरकार चट हो जाएगी . . !

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