दो माह : एसआईटी और स्टे

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रायपुर.

15 साल की सुबह एक रात के बाद अचानक बदल गई. 11 दिसंबर को जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई थी.

कांग्रेस की जीत से ज्यादा बातें भाजपा की बदतर हार को लेकर हो रही थी. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ को अपने लिए फिर से उस गढ़ में तब्दील किया जो अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान इंदिरा के समय हुआ करता था.

लंबे चले अंदरुनी गतिरोध के बाद 68 सीटों का दम भर चुके भूपेश बघेल सीएम हुए. और इसके साथ ही शुरु हुआ 15 साल बाद एक नई नवेली कांग्रेस सरकार का समय.

भारत वर्ष में यह कांग्रेस शासित पहली सरकार है जिसमें दूसरी पीढ़ी के ही नेता मोर्चा संभाले हुए हैं.. क्यूंकि पहली पंक्ति के नेताओं को कांग्रेस ने झीरम में पहले ही खो दिया था.

17 दिसंबर की शाम शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री ने अंधाधुंध फैसले लिए. जनहित के फैसलों को अलग रखें तो पूरे देश का ध्यान खींचा लगातार हर बड़े मामले में एसआईटी के गठन को लेकर.

इस वक्त प्रदेश में पांच मामलों की जांच एसआईटी के हवाले है. झीरम में नक्सल हमला, अंतागढ़ में विधायक प्रत्याशी की कथित खरीद-फरोख्त को लेकर सामने आया टेप, नागरिक आपूर्ति निगम में कथित 36 हजार करोड़ के घोटाले की जांच एसआईटी कर रही है.

इसके अलावा डॉ. रमन की सरकार की विदाई के बाद कैग ने जो हिसाब-किताब सामने रखा उससे टेंडर घोटाला निकलकर सामने आया. इस मामले को भी एसआईटी को सौंप दिया गया.

दूसरी ओर प्रधानमंत्री कार्यालय को दिल्ली की विजया मिश्रा ने पूर्व आईआरएस व पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव अमन सिंह के खिलाफ जांच का आदेश दे दिया. अमन सिंह को रमन सरकार का सुपर सीएम कहा जाता था. मौका लपकते ही सरकार ने इस मामले को भी एसआईटी के सुपुर्द कर दिया.

कुल मिलकार प्रदेश में पांच एसआईटी तैयार हो गईं. इनकी घोषणाओं के साथ ही कुछ विवादों ने सरकार को परेशान कर दिया. मसलन, नान घोटाले की एसआईटी की जिम्मेदारी आईजी एसआरपी कल्लूरी को सौंपा जाना.

आईपीएस कल्लूरी का कार्यकाल विवादित रहा है. खासकर बस्तर रेंज में उनके कार्यकाल के दौरान मानवाधिकार हनन, फर्जी मुठभेड़ में आदिवासियों की हत्या, बलात्कार जैसे आरोप उन पर लगे थे. पत्रकारों के साथ उनकी ज्यादती भी मुद्दा थी. इसलिए ही उन्हें पूर्व में पीएचक्यू भेज दिया गया था.

बहरहाल, इन विवादों से जैसे-तैसे जूझती हुई सरकार ने जांच आगे बढ़ाई. लेकिन अब एसआईटी के गठन को लेकर ही सवाल खड़े होने लगे हैं.

मामलों में दोषी बताए जा रहे राजनेता, अधिकारी अब कोर्ट पहुंचकर एसआईटी की जांच को ही चुनौती दे रहे हैं. और तो और कांग्रेस सरकार के लिए सबसे बड़ी फजीहत उस अमन सिंह ने पैदा कर दी है जिन्होंने एसआईटी गठन पर हाईकोर्ट से स्टे ला लिया है.

इसी तरह झीरम हत्याकांड को लेकर एनआईए ने फाईल सौंपने से ही इंकार कर दिया है. हालांकि अभी सरकार ने कोर्ट जाकर इस केस से जुड़ी फाइलों को प्राप्त करने के विचार पर काम करना चालू किया है लेकिन कोर्ट का फैसला क्या कुछ होगा इस पर कोई कुछ नहीं कह सकता है.

अंतागढ़ टेपकांड में डॉ पुनीत गुप्ता, मंतूराम पवार सहित पूर्व मंत्री राजेश मूणत इन दिनों कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं.

इधर, नागरिक आपूर्ति निगम के कथित घोटाले पर गठित हुई एसआईटी को भाजपा की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक की याचिका पर एक मार्च को सुनवाई होनी है.

सूची में आखिरी क्रम पर रहे टेंडर घोटाले को लेकर जांच जारी है. इस मामले में ईओडब्लू के अधिकारियों ने चिप्स के दफ्तर में दबिश दी थी. कंप्यूटर के जानकार बुलवाए गए लेकिन इसके आगे आज दिनांक तक कोई महत्वपूर्ण जानकारी निकलकर सामने नहीं आई है.

बहरहाल, यह कांग्रेस की उस सरकार का लेखा जोखा है जिसने गिनकर अभी साठ दिन पूरे करने को है. जनहित के मुद्दों पर सरकार का प्रदर्शन जहां बेहद दमदार रहा है वहीं, पुरानी सरकार के कथित घोटालों पर कांग्रेस सरकार बहुत से मोर्चों पर उलझी नजर आती है. यह उलझन उसके लिए आने वाले दिनों में परेशानी का सबब भी बन सकती है.

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