सिंह का बहादुर अब बघवा के साथ…

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चौकीदार बहादुर की मुश्किलें तब बढ़ गई जब रियासत का राजा बदल गया. सिंह की जगह बघवा ने ले ली. शिकार करने में बघवा भी माहिर है. सिंह तो राजकाज चला रहा था लेकिन बघवा की फितरत कुछ और ही है. थर्राए बहादुर ने तत्काल माजरा समझ लिया.

मुर्गियों की सौदागरी करते करते बहादुर ने सिंह को काफी खुश रखा. सिंह की खुशामद करते समय बहादुर लगता है समय को भूल गया था. वह सिर्फ सिंह को समझता था और बाकियों को भाव भी नहीं देता था. बघवा इन्हीं सब बातों को लेकर बहादुर से नाराज चल रहा था. बघवा ने जैसे ही दांत खीसे तो बहादुर ने अपनी बहादुरी छोड़ दी. बताया जाता है कि बघवा को मनाने में बहादुर के पसीने छूट गए.

बात सौदागर की हो रही है तो बता देते हैं कि डील करोड़ों में हुई है. जनचर्चा तो यह भी है कि डील पक्की करने बतौर बयाना तकरीबन एक तिहाई नज़राना चढ़ा दिया गया है. सौदागर की दुकानें जो अंधेरे में डूब गई थी अब रौशन हैं.

राजा तो राजा मंत्री भी नाराज
जनचर्चा के मुताबिक राजा के साथ ही उनके मंत्री भी बहादुर से बेहद नाराज चल रहे थे. दरअसल बहादुर ने काम भी कुछ ऐसा ही किया था.

सीमावर्ती क्षेत्र में जाकर उसने सिंह के इशारे पर मंत्री को पटखनी देने का असफल प्रयास किया. इस बार मंत्री चूकने वाले नहीं थे. जैसे ही मंत्री को दिव्यशक्ति प्राप्त हुई उन्होंने ब्रह्मास्त्र बहादुर के ऊपर चला दिया.

चूंकि मंत्री द्वारा चलाया गया ब्रह्मास्त्र था इस कारण बहादुर की दुकानदारी अंधेरे में डूब गई. अंधेरा भी इतना व्यापक था कि बहादुर के एक हाथ को दूसरा हाथ दिखाई नहीं दे रहा था.

वह दौड़ा भागा मंत्री के दरबार में पहुंचा. मंत्री ने जो खोज खबर बहादुर की ली, बहादुर को कुछ बोलना भी है समझ में नहीं आया. मंत्री ने कहा कि सिंह से तुम्हारी मित्रता है तो रहे लेकिन मुझसे तुम्हारी क्या दुश्मनी है. जो तुम मुझे निपटाने चले थे.

बहादुर की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी. वह चेहरा झुकाए, हाथ बांधे बैठे रहे. मंत्री ने उन्हें यहां तक सुनाया कि तुमने हमारे लोगों को भी बिना वजह परेशान किया है. इस पर बहादुर ने माफी मांगना ही उचित समझा. उसे क्या मालूम था कि उसकी जन्म कुंडली तैयार करके बघवा और मंत्री बैठे हुए है.

यक्ष प्रश्र : उस आईपीएस का नाम क्या है जिसे रुपयों की थैली भेंट कर जिले का प्रभार मिला?

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