कार्यालय देखकर नहीं लगता कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रत्याशी हैं !

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राजनांदगांव. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का सफल कार्यकाल… पाँच साल निर्विवाद मुख्यमंत्री… अन्य पिछडा़ वर्ग यानि कि ओबीसी से पार्टी का सबसे ताकतवर उभरता चेहरा… और न जाने क्या क्या… शायद इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखकर कांग्रेस ने भूपेश बघेल को राजनांदगांव से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया लेकिन पार्टी के केंद्रीय चुनाव कार्यालय की मायूस फिजां अहसास नहीं कराती है कि पूर्व मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं.

छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने 17 दिसंबर 2018 को शपथ ली थी. इसके पहले वह 2014 से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहे थे.

तब कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में रिकार्ड सीट जीती थी. 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के पहले तक पार्टी के भीतर और बाहर भूपेश के सामने तकरीबन कोई अपना मुँह नहीं खोलता था.

राजनांदगांव लोकसभा में कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव कार्यालय अधिकतर समय वीरान रहता है। यहां न ही नेताओं की मौजूदगी है और न चहलकदमी।

18 मार्च से तस्वीर बदल गई…

लेकिन यह तस्वीर का एक ही पहलू है. दूसरा हिस्सा इस साल 18 मार्च को घटित हुआ था.उस दिन जिले के सोमनी ब्लाक के ग्राम खुटेरी में कार्यकर्ता और बूथ स्तरीय सम्मेलन आयोजित हुआ था.

इसमें पूर्व मुख्यमंत्री और राजनांदगांव लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए गए भूपेश बघेल खुद शामिल हुए थे. तब मंच से क्षेत्र के कांग्रेस नेता पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेंद्र दास वैष्णव ने बघेल को खूब खरी खोटी सुनाई थी.

तब से भाजपाईयों, पत्रकारों से लेकर असंतुष्ट कांग्रेसियों के तीखे सवालों का सामना कांग्रेस के उम्मीदवार को करना पड़ रहा है.

जिले में विशेष तौर पर राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र के कई लोग यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री रहते हुए भूपेश बघेल ने राजनांदगांव के प्रति उपेक्षित व्यवहार किया था. हो सकता है कि इसका कारण पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह रहे हों जिनका निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव ही है.

विभिन्न कार्यालयों की यहाँ से जिस तरह से रवानगी दुर्ग की ओर हुई उसने भूपेश के खिलाफ यहाँ के आम जनमानस में स्वाभाविक नाराज़गी पैदा की है. उस पर से यहाँ दुर्ग के रहने वाले भूपेश को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाकर एक तरह से आग में घी डालने का काम किया.

अब इसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ रहा है. यहाँ कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव कार्यालय की तस्वीर बगैर कुछ बोले सबकुछ बोल देती है.

एक तो यह कार्यालय शहर से तकरीबन बाहर दुर्ग की दिशा में उस जगह पर बनाया गया है जहाँ पर अमुमन आना जाना नहीं होता. कार्यालय की मायूसी दूसरी कथा कहती है.

तस्वीर बताती है कि कुछ ठीक नहीं…

शाम के वक्त कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव कार्यालय जाने की इच्छा हुई. अपनी दुपहिया से जब हम पहुँचे तब वहाँ पर गिनती के चार-पाँच आदमी ही थे.

पूछने पर दो-चार ने अपने आप को मजदूर बताया जिन्हें चुनावी सामग्री चढा़ने-उतारने रोजी पर रखा गया है. एक अन्य से बात हुई तो उसने कहा कि समय समय पर गिरीश भैया ( गिरीश देवांगन ), जीतू भैया ( जितेंद्र मुदलियार ) आते रहते हैं.

इसके आगे की जानकारी देने में वह एक तरह से लाचार नज़र आया. बस इतना ही कहा कि भूपेश बघेल नामांकन वाले दिन कार्यालय आए थे उसके बाद नहीं आए हैं.

बहरहाल, कार्यालय की खामोशी बहुत कुछ अपने से कह जाती है. बशर्ते कि आप उस खामोशी में छिपी बातों को जान सको, समझ सको तो…

…लगता नहीं कि यह उस राजनेता का चुनावी दफ्तर है जो चंद महीनों पहले तक राज्य का मुखिया हुआ करता था. कहीं जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दाऊ द्वारा उठाए गए सवाल सच साबित तो नहीं हो रहे हैं ?

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