नौ साल में भूपेश की टक्‍कर का नेता नहीं ढूंढ पाए विपक्षी

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नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
रायपुर। तकरीबन नौ साल से छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल का नाम दिन प्रतिदिन मजबूत हुए जा रहा है। पहले प्रदेश अध्‍यक्ष बतौर और बाद में राज्‍य के मुख्‍यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने ऐसा काम किया कि उनकी चहुंओर प्रशंसा हो रही है। इस अवधि में विपक्षी दल उनकी टक्‍कर का कोई नेता नहीं ढूंढ पाया है।

राज्‍य में कांग्रेस के लिए 2003 के बाद हुआ बुरा समय लगातार चलते रहा। पहले भाजपा ने 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को परास्‍त कर अपनी सरकार बनाई थी। 15 साल तक कांग्रेस सरकार बनाने जी जान एक करती रही लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई। तभी झीरम का वह एक हादसा हुआ जिसमें कांग्रेस की एक पीढ़ी खत्‍म हो गई और नई पीढ़ी को जिम्‍मेदारी मिली। यहीं से कांग्रेस उठना शुरू हुई।

प्रदेश अध्‍यक्ष बन लड़ना सिखाया
झीरम की नक्‍सली वारदात में राज्‍य इकाई के अध्‍यक्ष रहे नंदकुमार पटेल सहित विद्याचरण शुक्‍ल, नेता प्रतिपक्ष रहे महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार जैसे कांग्रेस के नेता शहीद हो गए थे। यह हादसा 2013 में हुआ था। दरभा घाटी में हुए इस नक्‍सली हमले में कुल जमा 28 लोग मारे गए थे। मतलब साफ है कि कांग्रेस की एक पीढ़ी ही खत्‍म हो चुकी थी।

तब कांग्रेस ने बघेल के चेहरे पर अपना विश्‍वास जताया था। उन्‍हें प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाया। बघेल ने वर्ष 2014 के अक्‍टूबर माह में कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष का दायित्‍व संभालने के साथ ही इस पार्टी को बीजेपी की आंख में आंख डालकर लड़ना सिखाया। हालां‍कि इस दौरान कई मर्तबा विवादों में भी घिरे लेकिन वह सरकार के साम दाम दंड भेद को ध्‍वस्‍त करते हुए कांग्रेस को मुख्‍य दौड़ में लेकर आ गए।

तब बहुत से कांग्रेसी यह कहते रहे थे कि या तो अजीत जोगी के हाथ में पार्टी सौंप दी जाए या फिर उन्‍हें पार्टी से बाहर किया जाए तो ही कांग्रेस की सरकार बन पाएगी। भूपेश ने इस परिस्थिति को न केवल झेला बल्कि ऐसा उपचार किया कि कांग्रेस की सरकार भी बन गई और जोगी पिता पुत्र कांग्रेस से बाहर हो गए। हालांकि जोगी ने कांग्रेस स्‍वयं छोड़ी थी जबकि उनके पुत्र को कांग्रेस ने बाहर का रास्‍ता दिखाया था।

तब तक 2018 आ गया था। तय समय पर विधानसभा चुनाव हुए। विधानसभा चुनाव में भूपेश और उनकी कांग्रेस ने इतना बेहतरीन प्रदर्शन किया कि 15 साल तक सत्‍ता में रही भाजपा महज 15 सीटों पर सिमट गई। भूपेश बघेल ने 17 दिसंबर 2018 को छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के तीसरे मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ ली। तब से लेकर अब तक उनके विपक्षी किंतु परंतु कर रहे हैं लेकिन उन्‍हें भूपेश की न तो काट मिल पाई और न ही उस जैसा कोई नेता तलाशा जा सका।

छग का मान बढ़ाया
भूपेश बघेल शुरूआती समय में प्रदेश अध्‍यक्ष और मुख्‍यमंत्री दोनों पदों पर थे। तब राज्‍य में कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष की तलाश कर रही थी। यह तलाश मोहन मरकाम के रूप में पूरी हुई और कोंडागांव विधायक रहे मोहन मरकाम जून 2019 में पीसीसी अध्‍यक्ष बनें। पार्टी के भीतर और बाहर बन रही चुनौतियों से बेपरवाह भूपेश बघेल ने छत्‍तीसगढि़यावाद को घर घर पहुंचा दिया।

गांव, गरीब, किसान के साथ ही उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ और यहां की संस्‍कृति का ऐसा पालन पोषण किया कि अब उनके विपक्षी भी तीजा, पोला जैसे छत्‍तीसगढ़ी पर्वों की बात करते हुए नजर आते हैं। बघेल के नेतृत्‍व में शुरू हुई नरवा, गरूआ, घुरवा, बाड़ी जैसी योजना छत्‍तीसगढ़ के मान सम्‍मान को बढ़ाती हुई प्रतीत हो रही है।

दो चुनावी वायदे अपने शपथ ग्रहण समारोह के महज कुछ घंटों के भीतर पूरे करने वाले भूपेश बघेल आज किसानों के सर्वाधिक चहेते मुख्‍यमंत्री माने जा सकते हैं। एंटी इनकम्‍बेंसी फैक्‍टर अमुमन किसी भी राज्‍य के सीएम को परेशान करता रहता हो लेकिन भूपेश बघेल की किस्‍मत खुद की बनाई हुई ऐसी है कि वह इससे भी मुक्‍त हैं।

राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बघेल एंटी इनकम्‍बेंसी के मामले में सुरक्षित श्रेणी में बताए जाते हैं। मतलब राज्‍य की बहुत बड़ी आबादी उनसे बहुत ज्‍यादा नाराज नहीं है। जनता को प्रसन्‍न रखने के मामले में भूपेश बघेल देश में प्रथम पंक्ति के मुख्‍यमंत्री माने जा सकते हैं।

यदि यही हाल रहा तो भूपेश बघेल का आने वाला समय भी उज्‍जवल ही होगा। क्‍यों… क्‍योंकि इस अवधि के बाद भी उनके विपक्षी न तो केवल उनकी काट ढूंढ पाए हैं और न ही छत्‍तीसगढि़यावाद को भोथरा कर पाए हैं। 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल स्‍वभाविक रूप से कांग्रेस के भीतर प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं।

ऐसा इस कारण होगा कि भूपेश बघेल न केवल अन्‍य पिछड़ा वर्ग से आते हैं बल्कि उनमें उम्र से जुड़ी सहुलता भी है। भूपेश बघेल जीवन के 6 दशक पूरे कर चुके हैं। इस अवधि में उन्‍होंने मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ़ जैसे राज्‍यों में शासन-प्रशासन को नजदीक से देखा और समझा है।

मध्‍यप्रदेश में मंत्री वह रह चुके हैं। छत्‍तीसगढ़ में मुख्‍यमंत्री का दायित्‍व वह निभा रहे हैं। यदि दूसरी मर्तबा वह कांग्रेस को सरकार में वापस ले आते हैं तो कांग्रेस के भीतर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर शायद ही उनसे बड़ा कोई नेता हो पाएगा। लेकिन इसके लिए उन्‍हें हर हाल में कांग्रेस को राज्‍य की सत्‍ता में एक बार फिर से वापस लाना होगा।

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