नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई क्यों नहीं दी

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भारत और चीन के बीच तनाव के दौरान लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षियों और आलोचकों के निशाने पर हैं. ताज़ा विवाद तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को जन्मदिन पर बधाई नहीं देने को लेकर शुरू हुआ है.


जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं. उनकी पार्टी के मंत्री या नेता का जन्मदिन हो या फिर विपक्ष के किसी नेता का, वो जन्मदिन की बधाई देना नहीं भूलते. कई राष्ट्राध्यक्षों को जन्मदिन की बधाई देने वालों में भी वो आगे रहते हैं.

लेकिन दलाई लामा के जन्मदिन पर उनको बधाई न देने के कारण पीएम नरेंद्र मोदी निशाने पर हैं. 6 जुलाई को तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का जन्मदिन था. 1935 में जन्मे दलाई लामा का यह 85वां जन्मदिन था.

कई लोगों ने दलाई लामा के जन्मदिन पर पीएम मोदी के बधाई नहीं देने को भारत-चीन के बीच चल रहे तनाव से जोड़ कर देखा है. दलाई लामा वैश्विक मंचों पर चीन के ख़िलाफ़ एक मुखर आवाज़ के रूप में जाने जाते रहे हैं.

वैसे नरेंद्र मोदी ने आख़िरी बार दलाई लामा को 2013 में बधाई दी थी जब वो देश के प्रधानमंत्री नहीं बने थे और गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

उस वक्त उन्होंने ट्वीट किया था, “परम पावन @DalaiLama को उनके जन्मदिन पर बधाई. वडोदरा में हुई हमारी मुलाक़ात की कुछ यादें साझा कर रहा हूँ.”
इस ट्वीट के साथ उन्होंने वडोदरा में हुई मुलाक़ात की तस्वीर का एक लिंक भी शेयर किया था.


कांग्रेस ने पूछे सवाल

इसके बाद के सालों में उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए कभी भी दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई नहीं दी. लेकिन अब इस पर कांग्रेस ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि पीएम मोदी की ऐसी क्या मजबूरी है जो उन्होंने दलाई लामा को बधाई नहीं दी. प्रधानमंत्री दफ्तर की ओर से भी दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई नहीं दी गई.

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने इस पर ट्वीट किया है, “हम माननीय @PMOIndia का इंतज़ार कर रहे थे कि वो परम पावन दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई देने में देश का नेतृत्व करेगा. मोदी जी की ओर से ऐसा नहीं करने की कोई बाध्यता हो सकती है. पूरे देश की तरफ से हम परम पावन @DalaiLama के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं. हम आपका आशीर्वाद पाकर खुद को धन्य पाते हैं.”


कांग्रेस के कई दूसरे नेताओं ने भी प्रधानमंत्री मोदी को इस पर आड़े हाथों लिया है. ये अलग बात है कि न तो राहुल गांधी ने और न ही प्रियंका गांधी ने दलाई लामा को ट्वीट कर बधाई दी.

इसके अलावा कई दूसरे लोगों ने भी सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की ओर से दलाई लामा को जन्मदिन पर बधाई नहीं देने को लेकर सवाल खड़े किए हैं और चुटकी ली है.

पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने ट्वीट किया है, दुखदायी है कि @PMOIndia ने दलाई लामा को उनके 85वें जन्मदिन पर बधाई नहीं दी. चीन परेशान हो जाएगा.


स्वीडन की अपसला यूनिवर्सिटी में पीस एंड कनफ्लिक्ट रिसर्च के प्रोफ़ेसर अशोक स्वेन ने ट्वीट किया है, “शी से कोविंद और मोदी ने दलाई लामा को 85वें जन्मदिन पर बधाई तक नहीं दी! आप उनसे चीन के ख़िलाफ़ खड़े होने की उम्मीद करते हैं?”

अशोक स्वेन का इशारा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पीएम मोदी की तरफ था.


कांग्रेस की नेशनल मीडिया कॉर्डिनेटर ने कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया है, “मैं चीन का नाम नहीं लूँगा मैं महामहिम दलाई लामा जी को जन्मदिन की बधाई नहीं दूँगा. बूझो तो जानें….”


केंद्रीय मंत्रियों में किरेन रिजिजू के अलावा किसी भी वरिष्ठ मंत्री ने दलाई लामा को जन्मदिन की शुभकामना नहीं दी.


हालांकि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता प्रेमा खांडू ने ट्वीट पर दलाई लामा को बधाई दी और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन की कामना की.


लद्दाख़ से बीजेपी सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल ने भी दलाई लामा को जन्मदिन पर शुभकामनाएं दी.


हाल में नरेंद्र मोदी ने लेह दौरे के दौरान अपने संबोधन में भी चीन का कोई ज़िक्र नहीं किया था. इसे लेकर भी आलोचकों और विपक्षी दलों ने पीएम मोदी को घेरा था.

3 जुलाई को अचानक मोदी सेना के अधिकारियों और जवानों से मुलाक़ात करने और हालात का जायज़ा लेने लेह पहुंच गए थे.

15-16 जून की रात भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवानों की मौत हो गई थी.
इसके 17 दिनों के बाद वो लेह पहुंचे थे और वहां उन्होंने सेना के जवानों से बात की थी.

दलाई लामा पर भारत का रुख़

61 साल पहले 1959 में दलाई लामा को तिब्बत से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. 31 मार्च 1959 को तिब्बत के इस धर्मगुरु ने भारत में क़दम रखा था.

17 मार्च को वो तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे और हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए 15 दिनों बाद भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे.

यात्रा के दौरान उनकी और उनके सहयोगियों की कोई ख़बर नहीं आने पर कई लोग ये आशंका जताने लगे थे कि उनकी मौत हो गई होगी. भारत पहुँच कर उन्होंने एक निर्वासित सरकार का गठन किया.

भारत का रुख़ तिब्बत को लेकर बदलता रहा है. साल 2003 के जून महीने में भारत ने ये आधिकारिक रूप से मान लिया था कि तिब्बत चीन का हिस्सा है.

चीन के उस समय के राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाक़ात के बाद भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन का अंग माना था. हालांकि तब ये कहा गया था कि ये मान्यता परोक्ष ही है.

भारतीय अधिकारियों ने उस वक्त ये कहा था कि भारत ने पूरे तिब्बत को मान्यता नहीं दी है जो कि चीन का एक बड़ा हिस्सा है. बल्कि भारत ने उस हिस्से को ही मान्यता दी है जिसे स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र माना जाता है.

1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला. दलाई लामा का अब कहना है कि वह चीन से आज़ादी नहीं चाहते हैं, लेकिन स्वायतता चाहते हैं.

चीन तिब्बत को अपना भू-भाग मानता रहा है लेकिन तिब्बत ख़ुद को चीन के अधीन नहीं मानता और अपनी आज़ादी की बात करता रहा है.

चीन, तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है. अरुणाचल प्रदेश की चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.

तिब्बत को चीन ने साल 1951 में अपने नियंत्रण में ले लिया था, जबकि साल 1938 में खींची गई मैकमोहन लाइन के मुताबिक़ अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है.

1950 के दशक से दलाई लामा और चीन के बीच शुरू हुआ विवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है. चीन उन्हें एक अलगाववादी नेता मानता है. दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से रिश्ते अक्सर तनावपूर्ण रहते हैं.

भारत ने एक तरफ तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है तो दूसरी तरफ दलाई लामा को शरण भी दी हुई है.

( साभार : बीबीसी )

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