पटवारी से पुलिस अधीक्षक का पद मेहनत से मिला !

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नेशन अलर्ट, 97706-56789

बीकानेर.

पटवारी पद पर चयनित हुआ युवा आगे चलकर अखिल भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के लिए चुन लिया जाता है. इसके बावजूद इस युवा की इच्छा अभी खत्म नहीं हुई है. उसका सपना आगे आईएएस बनने का है.

मामला नोखा तहसील के गांव रासीसर गांव से जुड़ा हुआ है. इसी गांव में रहने वाले डेलू परिवार में 3 अप्रैल 1988 को जन्में प्रेमसुख डेलू सफलता की सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते जा रहे हैं.

6 साल 12 नौकरी

प्रेमसुख ने 6 साल में 12 नौकरियां वह भी शासकीय…. प्राप्त की है. इस तरह की नौकरियों में प्रतिस्पर्धा के चलते चुन लिया जाना बेहद कठिन होता है.

लेकिन एक बार नहीं बल्कि 12 मर्तबा प्रेमसुख ने इस कठिनाई को पार किया है. फिलहाल वह आईपीएस हैं. उन्हें गुजरात कार्डर मिला हुआ है. वे इन दिनों अमरोली जिले में एएसपी के पद पर ट्रेनिंग कर रहे हैं.

बचपन से होनहार प्रेमसुख बताते हैं कि उनका सरकारी नौकरियां लगने का सिलसिला वर्ष 2010 में शुरू हुआ. उस समय उनकी उम्र महज 19 साल हुआ करती थी. तब वह बीकानेर जिले में पटवारी के रूप में चयनित हुए थे.

पटवारी पद पर उन्होंने तकरीबन दो साल काम किया. इस दौरान और अच्छा करने की चाहत उन्हें पढऩे लालायित करते रही. उन्होंने आने वाले दिनों में भी परीक्षाएं दी.

उनका चयन ग्राम सेवक पद पर हुआ. दूसरी रैंक हासिल करने के बावजूद उन्होंने ग्राम सेवक पद ज्वाइन नहीं किया. असिस्टेंट जेलर के पद पर वह राजस्थान में पहले स्थान पर चुने गए थे.

इस पद को ज्वाइन करने के पहले उन्हें सबइंस्पेक्टर पद पर राजस्थान में चुन लिया गया. इस पद को भी उन्होंने महज इस कारण छोड़ दिया कि उनका चयन स्कूल व्याख्याता के रूप में हो गया था.

पुलिस महकमे की जगह उन्होंने शिक्षा विभाग की नौकरी करना उचित समझा. इसी दौरान वह कॉलेज व्याख्याता चुने गए. बाद में तहसीलदार चुन लिए गए.

कई विभागों में छ: साल की अवधि के दौरान विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने अपनी मेहनत जारी रखी.

सिविल सेवा परीक्षा 2015 में उन्होंने 170वीं रैंक प्राप्त की. हिंदी माध्यम के साथ सफल उम्मीदवारों में वे तीसरे स्थान पर रहे थे. फिलहाल वे गुजरात में बतौर ट्रेनी आईपीएस हैं.

आईपीएस बनने के बावजूद प्रेमसुख की इच्छा अभी मरी नहीं है. उनका सपना आईएएस बनने का है. हो सकता है यह ख्वाब भी शीघ्र पूरा हो जाए क्योंकि उन्होंने आईएएस के लिए साक्षात्कार दे रखा है.

प्रेमसुख बताते हैं कि उनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा है. वह शासकीय स्कूलों में पढ़े हैं. आठवीं तक उन्होंने कभी पैंट नहीं पहनी थी. माता पिता पढ़े लिखे नहीं हैं. पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे.

माता पिता के आशीर्वाद और उनके द्वारा दिए गए अवसर से वह पढ़ लिख कर काबिल बनें हैं. चार भाई बहनों में सबसे छोटे प्रेमसुख का बड़ा भाई राजस्थान पुलिस में आरक्षक पद पर कार्यरत है.

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