माजीसा की लहर ऐसी हुई कि भोजन त्यागे ढाई दशक हो गए . . .

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नोखामंडी. राजस्थान में एक गांंव है बंबू. . . बीदासर तहसील, जिला चूरू अंतर्गत आने वाले इसी गाँव में जसोलवाली माँ माजीसा धनियानी की एक भगत हैं जिन्होंने एक दो नहीं बल्कि पिछले 23 वर्षों से भोजन ग्रहण नहीं किया है. पूरी तरह से स्वस्थ यह महिला भगत सिर्फ़ चाय पानी के सहारे माजीसा की भक्ति में दिनरात जुटी हुई हैं.

जसोलवाली माँ के नाम से प्रसिद्ध माजीसा का एक नाम माँ स्वरूपा है. माँ के ही नाम से इनका भी नाम बडे़ लाड़प्यार से इनके माता पिता ने स्वरूप बाईसा रखा था. शुरूआती दिनों में अपने मायके नोखा में ही अपनी माताश्री को माँ माजीसा की सेवा करते हुए इन्हें भी भक्ति भाव की ऐसी धुन लगी कि महज 12 साल की उम्र से पधारे होने लगे.

प्रत्येक माह की सातम, नवमीं और तेरस को अब बंबू गाँव का एक तरह से अलग नजारा रहता है. इन दिनों में माँ का दरबार लगता है. इन दिनों में सुबह 9 बजे माजीसा की जोत होती है.

9 की उम्र में हुई शादी, नोखा छूटा. . . बंबू आई

स्वरूप बाईसा का ब्याह महज 9 वर्ष की उम्र में हो गया था. मायका नोखा से लगभग 60 किमी दूर सांडवा के नजदीक बंबू गाँव निवासी राठौर परिवार में इनका सासरा ( ससुराल ) है. विवाह के शुरूआती वर्षों में ससुराल वाले इन्हें साधारण स्त्री ही मानते थे लेकिन धीरे धीरे इनके चमत्कार दिखाई देने लगे और पूछपरख बढ़ गई.

12 साल की उम्र से इनके मुख से माँ माजीसा बोलने लगी. एक मर्तबा यह पैदल ही जसोल के लिए रवाना हुईं. जसोल पहुँचने के बाद इन्होंने माँ भटियानी की सेवा करने का ऐसा प्रण लिया कि भोजन ही त्याग दिया. इस बात को आज तकरीबन 23 साल हो गए हैं जब से सिर्फ़ चाय पानी ही ग्रहण किया है.

देर रात तक जुटे रहते हैं परेशान भगत

प्रत्येक माह की सातम, नवमीं और तेरस को अब बंबू गाँव का एक तरह से अलग नजारा रहता है. इन दिनों में माँ का दरबार लगता है. इन दिनों में सुबह 9 बजे माजीसा की जोत होती है.

जोत के बाद दरबार में माँ माजीसा के भक्त जोकि दूर दूर से आते हैं अपनी समस्या के निराकरण के संदर्भ में पूछा ( पूछताछ करना ) में शामिल होते हैं. शारीरिक परेशानियों, गृहक्लेश, नौकरी, व्यवसाय से लेकर तंत्र क्रिया तक की दिक्कतों का जसोलवाली माँ माजीसा के इस दिव्य दरबार में निदान का प्रयास किया जाता है.

परदेश तक फैली महिमा . . .

राजस्थान सीमावर्ती राज्य है. इसके पडोस में ही पाकिस्तान है. इसी पाकिस्तान से माँ माजीसा के इस दरबार की महिमा सुनकर एक भगत ने पहले टेलीफोनिक संपर्क किया था. माँ स्वरूप बाईसा द्वारा बताए गए उपाय से उसकी समस्या धीरे धीरे कम होने लगी तो वह गाँव बंबू स्थित माँ माजीसा के दर्शन करने उनके मंदिर आया था. पाक से आए से आए इस भगत ने अपनी श्रध्दास्वरूप टेंट की व्यवस्था करवाई थी.

भगतों की भीड़ इतनी होती है कि माँ का यह दिव्य दरबार रात्रि के डेढ़ दो बजे तक लगे रहता है. इस अवधि में सुबह से देर रात तक माँ की सेवा में जुटी बाईसा सिर्फ़ चाय पानी ही ग्रहण करती हैं जोकि जानकारों के मुताबिक दैनिक आहार विगत कई वर्षों से है.

माजीसा माँ के चमत्कारों से लाभ अर्जित करने वाले उनके भगत मोहनराम सियाग, महेन्द्र सिंह, श्रवण सोनी आदि बताते हैं कि माँ के इस दरबार में सच्ची श्रध्दा भक्ति के साथ आए जातरूओं की न केवल समस्या दूर होती है बल्कि उन्हें आगे यानि कि भविष्य का रास्ता भी माजीसा की तरफ से बताया जाता है.

. . .तो आप भी यदि किन्हीं परेशानियों से घिरे हुए हैं तो बंबू के माजीसा धाम से उनके निदान के लिए प्रयास कर सकते हैं. याद रखिए किसी भी महीने की ग्यारस, अमावस्या और पूर्णिमा को माँ की बैठक नहीं होती है. बंबू में माजीसा मंदिर जाने के इच्छुक भगत शिवसिंह जी राठौर के घर का पता पूछ सकते हैं तो कोई भी उन्हें माँ माजीसा के मंदिर तक जाने का रास्ता बता देगा.

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