भाजपा के राष्‍ट्रवाद से लड़ रहा भूपेश का छत्‍तीसगढि़यावाद !

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नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
रायपुर। भाजपा यानि कि भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में कथित तौर पर राष्‍ट्रवाद के नाम पर एक जो अलख जलाकर रखी है वह छत्‍तीसगढ़ में क्‍यूं और कैसे प्रभावी नहीं हो पा रही है यदि इसे आपको जानना समझना है तो यहां के मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल के छत्‍तीसगढि़यावाद से मिलिए… आपको सबकुछ समझ आ जाएगा। राष्‍ट्रवाद से कैसे और क्‍यों छत्‍तीसगढि़यावाद न केवल लड़ रहा है बल्कि उसके माथे पर विजय तिलक भी हो रहा है।

उल्‍लेखनीय है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्‍ट्र की सत्‍ता संभालने के बाद कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक, विशाखापट्टनम से लेकर मुंबई तक… उत्‍तर से दक्षिण तक… पूरब से पश्चिम तक… मतलब पूरे देश में बड़ी तेजी से राष्‍ट्रवाद पनपा। इसे पुष्पित पल्‍लवित करने में भाजपा ने भी अपना जी जान लगा दी।

अब राष्‍ट्रवाद के बैनर तले भाजपा न केवल चुनाव लड़ती है बल्कि अधिकांश चुनावों में उसे विजयश्री भी हासिल हुई है। भाजपा का यह विजयरथ लेकिन छत्‍तीसगढ़ आते आते हांफने लगता है। ऐसा क्‍यूं और कैसे होता है? छत्‍तीसगढ़ में भाजपा का राष्‍ट्रवाद क्‍यूंकर असरकारक नहीं रहता है? क्‍यूं भाजपा यहां आकर अपने मुद्दों से भटक जाती है ?

इन सवालों के जवाब छत्‍तीसगढि़यावाद में छिपे हुए हैं। यहां के मुख्‍यमंत्री न केवल किसान हैं बल्कि छत्‍तीसगढि़या बोली-भाषा, संस्‍कृति, संस्‍कारों से लैस भी हैं। वह भगवान श्रीराम को मानने वाले भी हैं और गौ माता के सेवक भी हैं। मतलब वह उन सारे गुणों से परिपूर्ण हैं जिन गुणों को भाजपा मुद्दा बनाकर राजनीति करती रही है।

अब देखिए न… भाजपा के 15 साल के शासनकाल में शायद ही कभी छत्‍तीसगढ़ी अथवा छत्‍तीसगढि़या लोगों की बात सुनाई दी हो। नारा जरूर था कि छत्‍तीसगढि़या सबले बढि़या लेकिन यहां राज बाहर से आए हुए लोगों का एक तरह से प्रभावी था। धीरे धीरे ही सही भूपेश बघेल के प्रयासों ने भाजपा को अब छत्‍तीसगढि़या से जुड़ने को मजबूर कर दिया है।

तभी तो अब यहां आकर भाजपा के बड़े बड़े नेता अपनी सभाओं की शुरूआत जय छत्‍तीसगढि़या महतारी के संबोधन से करते हैं…यहां जय जोहार बोला जाता है…बूढ़ादेव, बड़ादेव सहित माता दंतेश्‍वरी का जयगान किया जाता है। शहीद वीरनारायण और गुंडाधुर याद किए जाते हैं।

शायद यह पहली मर्तबा होगा जब भाजपा ने ‘अउ नइ सहिबो बदल के रहिबो’ जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल करते हुए अपने चुनाव अभियान की शुरूआत छत्‍तीसगढ़ में की होगी। मतलब साफ है कि भाजपा को उसके माफिक पिच से अपने माफिक पिच पर लाने में मुख्‍यमंत्री बघेल सफल हो रहे हैं।

यदि मुख्‍यमंत्री की यह रणनीति आगे भी कामयाब रही तो एक बार फिर यहां की जनता कह उठेगी कि छत्‍तीसगढि़या सबले बढि़या… लेकिन इसके लिए कांग्रेस को अपने मनमुटाव छोड़कर अपने विपक्षी दलों के चाल चरित्र चेहरे को गंभीरतापूर्वक समझना होगा और उसी अनुरूप कदम उठाने होंगे। तब तक भूपेश की कांग्रेस को राष्‍ट्रवाद से ओतप्रोत भाजपा की हर रणनीति से संभलकर जूझना पड़ेगा।

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