भाजपा सरकार के समय बंधुआ चाकरी के लिए भेजी गईं आदिवासी युवतियों से कांग्रेस ने भी मुंह मोडा़

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माकपा ने उठाया मुद्दा , मुख्यमंत्री को पत्र लिखा

नेशन अलर्ट / 97706 56789

रायपुर.

भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल आदिवासियों के कितने हित चिंतक हैं यह समझना हो तो कांकेर से निकलकर अलवर पहुंची आदिवासी युवतियां की पीडा़ सुनिए . . . आपको सब कुछ समझ आ जाएगा.

वह तो भला हो कि इन आदिवासी युवतियों की परेशानी को आज मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ( माकपा ) ने पत्रकारों के समझ उठाया नहीं तो इनकी सुध न तो भाजपा ले रही थी और न ही कांग्रेस. और तो और इन्हें ले जाने वाली, प्रशिक्षण देने वाली कंपनियों ने भी इनका हालचाल जानने कोई कोशिश की.

माकपा के राज्य सचिव संजय पराते ने सोमवार को इस विषय पर पत्रकारों का ध्यान आकृष्ट किया. पत्रकार भी यह जानकार हैरान रह गए कि कभी भाजपा सरकार के समय प्रशिक्षित हुईं यह युवतियां कांग्रेस शासन वाले राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक में उपेक्षित हैं.

क्या थी दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना ?

पिछली भाजपा सरकार के समय राज्य में दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना चलाई गई थी. पराते के मुताबिक इसका उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित कर न्यूनतम वेतन या अधिक पर उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करना था. इस योजना के संचालन के लिए फंड केंद्र सरकार से दिया गया है.

पराते बताते हैं कि यह प्रशिक्षण क्वेस कॉर्प लिमिटेड और अन्य प्राइवेट एजेंसियों के जरिए करवाया गया था. वर्ष 2017 में कांकेर जिले में यह प्रशिक्षण लाइवलीहुड कॉलेज में किया गया था.

उनके अनुसार क्वेस कॉर्प लिमिटेड का ऑफिस अवंती विहार, रायपुर में है. प्रशिक्षण देने वाली इन कंपनियों ने इन आदिवासी युवा एवं युवतियों को सरकार की पूरी जानकारी में आउटसोर्सिंग के नाम पर दूसरे राज्यों की ऐसी कई प्राइवेट कंपनियों की गुलामी के लिए सौंप दिया है, जो इन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं देती.

पराते कहते हैं इन प्राइवेट कंपनियों के लिए इन आदिवासी बच्चों से काम करवाने के लिए कोई नियम-शर्ते भी तय नहीं किए गए हैं. कांकेर जिले से भी कई आदिवासी युवा-युवतियों को राजस्थान के अलवर में कई प्राइवेट कंपनियों में काम करने के लिए प्रशिक्षण के बाद भेजा गया है.

बकौल संजय ” केंद्र सरकार द्वारा अनियोजित लॉक डाऊन के कारण अभी तक वे वहां फंसे पड़े हैं. फिलहाल माकपा के पास 28 आदिवासी युवतियों जिनमें से अधिकांश की आयु 19-24 वर्ष के बीच है और 9 युवाओं की सूची है, जो वहां फंसे हैं.

वे बताते हैं कि इनमें से 20 आदिवासी युवतियों ने छत्तीसगढ़ आने के लिए अपना पंजीयन भी कराया हुआ है. पता चला है कि पूरे देश के विभिन्न राज्यों में 3000 से ज्यादा आदिवासी युवा, जो निश्चित ही प्रवासी मजदूरों की श्रेणी में गिने जाएंगे, फंसे हुए हैं. इन युवाओं के बारे में सरकार आसानी से पता कर सकती है।

आदिवासी युवतियां बुरी हालत में रह रहीं

उन्होंने कहा कि इन आदिवासी लड़कियों के साथ उन्होंने टेलीफोनिक बातचीत की थी. बातचीत से पता चला कि ये आदिवासी बच्चियां बहुत ही बुरी हालत में रह रही हैं. इन्हें महज आठ-नौ हजार रुपए देकर काम करवाया जा रहा है.

इन्हीं पैसों से वे अलवर में किराए के मकान में रहते हैं. अपने लिए भोजन का प्रबंध करते हैं और बचाकर अपने घरों की आर्थिक मदद भी करते हैं. वर्ष 2017 में कांकेर के लाइवलीहुड कॉलेज से अलवर में भेजी गई इन युवतियों के वेतन में आज तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है.

लॉक डाऊन अवधि के दौरान मार्च से अभी तक उन्हें वेतन के रूप में फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है. निश्चित ही, ये परिस्थितियां बताती हैं कि भाजपा सरकार ने बिना किसी नियंत्रण, नियमन व शर्तों के ऐसी प्राइवेट कंपनियों को इन आदिवासी बच्चों को बंधुआ चाकरी के लिए सौंप दिया था.

पराते कहते हैं कि अलवर में फंसे आदिवासी युवा-युवतियों सहित विभिन्न राज्यों में इस तरह फंसे हुए सभी युवाओं को सुरक्षित ढंग से वापस लाने की जिम्मेदारी सरकार की है, जिसके निर्देश भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए हैं.

इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा गया है. माकपा को आशा है कि इस विशेष मामले का तत्काल संज्ञान लेकर कांकेर जिले के इन 37 आदिवासी युवाओं की सुरक्षित ढंग से घर वापसी कराने के लिए सीएम उचित कदम उठाएंगे.

मुख्यमंत्री से यह मांग की गई है कि इसी तरह अन्य राज्यों में फंसे पड़े युवाओं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी और लड़कियां हैं, कि पतासाजी कर उन्हें वापस लाया जाए, जिनकी संख्या 3000 से ऊपर बताई जा रही है.

उनके अनुसार बिना किसी नियंत्रण, नियमन व शर्तों के ग्रामीण युवाओं को न्यूनतम वेतन से भी कम मजदूरी पर बाहरी राज्यों में कार्यरत प्राइवेट कंपनियों को सौंपना आदिवासियों के साथ एक बड़ी धोखाधड़ी और साजिश की ओर इशारा करता है.

पराते कहते हैं कि आदिवासी मामलों के प्रति विशेष रूप से संवेदना रखने वाले मुख्यमंत्री के रूप में और अलवर प्रकरण से उजागर हुए तथ्यों की संवेदनशीलता को देखते हुए पिछले भाजपा राज में ग्रामीण कौशल योजना के नाम पर आदिवासियों के साथ की गई धोखाधड़ी और उन्हें बंधुआ चाकरी में धकेलने की जांच कराई जाएगी और दोषियों को दंडित किया जाएगा.

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