किसानी संकट सिर्फ़ कृषि संकट नहीं रह गया : सरोज

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रायपुर.

हाल के दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सारे संकेतकों ने समूचे देश को चिंता में डाल दिया है। शुतुरमुर्ग की तरह आंखें बंद करके तूफान के टल जाने की उम्मीद की तरह मोदी सरकार आचरण कर रही है।

मैनुफैक्चरिंग की विकास दर का ऋणात्मक हो जाना, नागरिकों की मासिक खपत में करीब 100 रुपयों की कमी आ जाना, बेरोजगारी दर का तेजी से बढ़ जाना और दैनिक उपभोग की चीजों के दाम में लगातार वृद्धि होते जाना इसी के उदाहरण हैं।

रही-सही पोल जीडीपी ने खोल दी है। यह गिरावट सरकार द्वारा अपनाई गई देशी-विदेशी कॉर्पोरेट-हितैषी नीतियों का नतीजा है। इन विनाशकारी नीतियों के उलटने के बजाय मोदी सरकार संकट को और अधिक बढ़ाने के उपाय कर रही है।

हाल में रिजर्व बैंक के सुरक्षित भंडार में से पौने दो लाख करोड़ रुपये निकालकर ठीक इतनी ही राशि की सौगातें कॉर्पोरेट कंपनियों को दिया जाना इसी मतिभ्रम की नीतियों को आगे बढऩे का उदाहरण है।

अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज रायपुर में एक संवाददाता सम्मेलन के माध्यम से उक्त बातें कही।्रनूरानी चौक राजा तालाब में भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव और छत्तीसगढ़ प्रभारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, छग राज्य इकाई के सचिव मंडल के सदस्य भी रहे है।

देश की किसान आबादी की हालत और भी अधिक खराब होती जा रही है। करीब 18 करोड़ किसान परिवारों में से 75 प्रतिशत परिवारों की आय मात्र 5000 रुपये मासिक या उससे भी कम है।

उस पर खाद, बीज और कीटनाशकों में विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को मनमर्जी की कीमतें तय करने की छूट देकर और फसल खरीदी के सारे तंत्र को ध्वस्त करके देश में खेती को अलाभकारी बनाकर रख दिया गया है।

बादल सरोज ने साफ कहा कि देश में इस समय देश में केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण खेती-किसानी का संकट अब सिर्फ कृषि संकट नहीं रह गया है, यह समूचे समाज और सभ्यता का संकट बन गया है।

बादल के अनुसार सभ्यता के मूल्यों में चौतरफा गिरावट, हिंसा, उन्माद, उत्पीडऩ और अवैधानिकताओं को स्वीकृति मिलना इसी के प्रतिबिंबन हैं। लोगों के आक्रोश को भटकाने के लिए सत्ता अब शिक्षा, शिक्षकों और विश्वविद्यालयों, किताबों और बौद्धिकता को अपने हमले का निशाना बना रही है।

उन्होंने कहा कि देश, समाज और सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी है कि इन विनाशकारी नीतियों को बदलकर उनकी जगह जनहितैषी और देशहितैषी नीतियों को लाया जाएं। ठीक इसी मांग को लेकर देश भर के लगभग सारे संगठनों के साझे मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 8 जनवरी 2020 को गांव-हड़ताल का आह्वान किया है।

यह हड़ताल इसी दिन हो रही देश भर के श्रमिकों की देशव्यापी हड़ताल की संगति में होगी। छत्तीसगढ़ में इस ग्रामीण बंद-हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए किसान सभा ने आज संपन्न अपनी दो-दिवसीय बैठक में विस्तृत अभियान की योजना बनाई है।

अखिल भारतीय किसान सभा भूमि अधिकार आंदोलन, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, वन स्वराज अभियान सहित सभी किसान संगठनों के संपर्क में हैं। ये सभी संगठन मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे।
देश की हाल ठीक नहीं बड़ा आंदोलन होगा सबका समर्थन मिल रहा है

बादल सरोज का दावा राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने जिस प्रकार अंग्रेजों के शासनकाल में असहयोग आंदोलन खड़ा किया था इस बार भी देश का बेरोजगार किसान एवं युवा जो चौतरफा संकट में है।

उनके अनुसार किसान सभा के गैर राजनीतिक आंदोलन का पूरा समर्थन देगा। 18 करोड़ किसान पूरी तरह सरकार की गलत नीति के कारण चौतरफा संकट में हैं। इसलिए 8 जनवरी 2020 को ग्रामीण भारत पूरी तरह से बंद रहेगा।

बादल सरोज ने कहा कि देश में उद्योगपतियों की नजर जल, जंगल, जमीन पर है। इसे मानव समाज की सभ्यता को संरक्षित रखने और अपेक्षित रूप से वंचित वर्गो को पहल की जरुरत है। किसानों की उत्पादन लागत बढ़ रही है।

सरोज के मुताबिक देश में कृषि उत्पाद की अपेक्षित व सम्मानजनक खरीदी का अभाव है। स्वामीनाथन कमेटी के रिपोर्ट पर संबंधित लोग मौन है। बिना टैक्स के विदेशी सामाग्रियों को देश में बिकवा जा रहा है।

इन नीतिगत प्रकोप के चलते देश में आम नागरिक और किसान चौतरफा संकट में है इसलिए किसान सभा ने गैर राजनीतिक आंदोलन के रुप में आहूत किया जिसे देशभर के 250 किसान संगठनों का समर्थन है।

बादल सरोज ने कहा कि यह आंदोलन 2015 एवं 2018 से बड़ा आंदोलन होगा। बादल सरोज ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की धान खरीदी नीति 2500 रुपए क्विंटल में धान खरीदी की प्रशंसा की तो केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य के चावल ना लेने के फैसले की निंदा भी की है।

पहले जैसे आप लोगों कि शक्ति नहीं है फिर भी सफलता के दावे कर रहे है। छत्तीसगढ़ में ही जितने किसान एवं मजदूर संगठन है। उनके आंदोलन अब तक अपेक्षित प्रभावकारी साबित नहीं हुए है?

बड़ी सफलता का दावा

बादल सरोज ने सीधे कहा कि हमारी कोशिश और पूर्व में आंदोलन किसानों के सफल भी हुए । पूर्व में केन्द्र और राज्य के द्वारा कई निर्णय किसान आंदोलन के कारण बदले गए।

छत्तीसगढ़ की मंडियों तथा समितियों में धान उत्पादक किसानों की लूट जारी है। उन्हें लंबे समय तक इंतजार ही नहीं कराया जा रहा, बल्कि 40 किलो की बोरी पर 5-5 किलो अतिरिक्त धान की भी जबरिया वसूली की जा रही है। इसे तत्काल रोका जाये।

इस मुद्दे पर छत्तीसगड किसान सभा आंदोलन छेड रही है। मंडियों, समितियों, तहसीलों और जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किए जाएंगे। धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों को बोनस दिए जाने पर छत्तीसगढ़ द्वारा उपार्जित चावल को केंद्र सरकार द्वारा न खरीदने की धमकी देना निंदनीय है। इसे वापस लिया जाना चाहिए और राज्य सरकार को बोनस दिए जाने की इजाजत दी जानी चाहिए।

किसान सभा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार फसल की सी-2 लागत मूल्य का डेड गुना समर्थन मूल्य दिए जाने की मांग दुहराती है।

किसान सभा पूरे प्रदेश में खनन और विकास के नाम पर वनाधिकारों को छीने जाने और विस्थापन पर रोक लगाने की मांग करती है और वनाधिकारों की स्थापना के लिए वन भूमि के व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टों को देने की प्रक्रिया को तेज करने की मांग करती है।

यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों और भावना के अनुसार वन भूमि पर काबिज किसी भी आदिवासी व कमजोर तबके के लोगों को बेदखल न किया जाए और ग्राम-सभा की राय को सर्वोच्च माना जाए।

हसदेव अरण्य और बैलाडीला की पहाडियों को अडानी को न देने की घोषणा राज्य सरकार को करनी चाहिए। किसान सभा इन क्षेत्रों में अपने जीवन-अस्तित्व के लिए आदिवासियों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों के समर्थन करती है।

सारकेगुड़ा : दोषियों को जेल भेजने में देरी क्यों?

बादल सरोज ने छत्तीसगढ़ के एक बहुचर्चित प्रकरण पर राज्य सरकार पर प्रहार करते हुए कहा है कि 2012 में सारकेगुड़ा जनसंहार की जांच के लिए बनी न्यायिक आयोग की रिपोर्ट आ गई है। अफसोस की बात है कि अभी तक सरकार ने किसी भी दोषी के खिलाफ मामला दर्ज कर उसे जेल नहीं भेजा है।

अखिल भारतीय किसान सभा की मांग है कि उस जनसंहार में शामिल सभी के विरूद्ध सोचे-समझे तरीके से हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए। उस जनसंहार को दबाने में अहम भूमिका निभाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी को भी अपराधी बनाया जाए और बिना देरी किये इन्हें तत्काल जेल भेजा जाए।

कथित मुठभेड़ों के बारे में समय-समय पर आ चुकी मानवाधिकार आयोग, सीबीआई, अनुसूचित जाति-जनजाति-महिला आयोग इत्यादि की रिपोर्ट्स के आधार पर भी सभी संबंधितों के विरूद्ध आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाए।

केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार को पीडि़तों के परिजनों तथा समूचे बस्तर से माफी भी मांगनी चाहिए। किसान सभा इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों के विरूद्ध, सारकेगुडा पीडितों को न्याय व समुचित मुआवजा देने के लिए अभियान चलाएगी।

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