पाइक विद्रोह : क्यूं नहीं हुआ इतिहास का पुनर्लेखन

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भुवनेश्वर.

इतिहास के पुनर्लेखन की बात करने वाली भाजपा की केंद्र सरकार लगता है उड़ीसा के पाइक विद्रोह को भूल गई है. तभी तो इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जा सका है.

उल्लेखनीय है कि रविवार याने कि 8 दिसंबर को पाइक विद्रोह स्मारक का शिलान्यास राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के करकमलों से हुआ है. इसके बाद पाइक विद्रोह पर एक बार फिर से राजनीति छिड़ चुकी है.

कौन सा वायदा भूल गई केंद्र सरकार ?

पाइक विद्रोह को लेकर उड़ीसा की सत्ताधारी पार्टी बीजद के निशाने पर भाजपा है. दरअसल, भाजपा की ओर से मानव संसाधन विकास मंत्री रह चुके प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि पाइक विद्रोह को पाठ्यक्रम में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में दर्ज किया जाएगा.

तब भाजपानीत एनडीए सरकार का प्रथम कार्यकाल हुआ करता था. हालांकि यह वायदा केंद्र सरकार आज तक पूरा नहीं कर पाई है. वर्ष 2017 में केंद्र ने पाइक विद्रोह के दो साल पूरा होने पर राज्यव्यापी शताब्दी समारोह मनाने का ऐलान किया था.

ज्ञात हो कि तब के केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सौ करोड़ का प्रावधान भी किया था. और तो और प्रधानमंत्री ने अंग्रेजों के खिलाफ पाइक विद्रोह के नायक बक्सी शहीद जनबंधु के परिजनों को राजभवन में सम्मानित भी किया था.

इनकी वीरता और शहादत उड़ीसा के लोगों के दिलोदिमाग में आज भी बैठी हुई है. 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठाओं को हराकर उड़ीसा पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त खोरदा के तत्कालीन राजा मुकुंद देव द्वितीय के हाथों से प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन छिन लिया गया था.

उस वक्त मुकुंद देव द्वितीय नाबालिग हुआ करते थे. राज्य को जयी राजगुरू चला रहे थे. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी. अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया. इस फांसी की खिलाफत क्रांति की शक्ल में सामने आई.

इसे बक्सी जगबंधु ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध लड़कर लोगों के बीच पहुंचाया. बक्सी के सैनिक अचानक अंग्रेजों पर हमला करते थे. आगे चलकर यही पाइक विद्रोह के रूप में जाना गया. तब खोरदा राजा के खेतिहर सैनिक युद्ध के समय हथियार उठाते थे और शेष अवधि में खेतीबाड़ी किया करते थे.

राज्य की बीजू जनता दल (बीजद) की सरकार यह मानते रही है कि पाइक विद्रोह आजादी की पहली लड़ाई माने जाने वाले 1857 की क्रांति के चालीस साल पहले की घटना है. इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की श्रेणी में रखने उसने एक समिति गठित की थी. इसी समिति की रपट इस विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में मानते रही है.

अब जबकि पाइक विद्रोह पर भाजपा अपने वायदे पर खरा नहीं उतर पाई है तो बीजद इसे पुन: उठा रही है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पाइक विद्रोह स्मारक निर्माण के लिए उड़ीसा सरकार से जमीन की मांग की थी. बीजद की सरकार ने यह जमीन दे भी दी. लेकिन आजादी की पहली लड़ाई के रूप में इसे मान्यता आज तक भाजपा की केंद्र सरकार नहीं दे पाई है.

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