शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण नहीं, संकुचीकरण करना चाहती है मोदी सरकार

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कोरबा.

जिले की तीन वामपंथी पार्टियों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी,भाकपा और भाकपा (माले)-लिबरेशन के साथ आप और बसपा ने भी मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति और जेएनयू में अकल्पनीय फीस वृद्धि के खिलाफ लड़ रहे छात्र समुदाय पर सरकार के बर्बर हमले के विरोध में प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन डॉ. भीमराव आंबेडकर की मूर्ति के सामने आयोजित किया गया।

प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति के नाम जिला प्रशासन को एक ज्ञापन भी सौंपा गया, जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिसिया हमलों की जांच की मांग करते हुए छात्रविरोधी रवैये के लिए जिम्मेदार कुलपति के इस्तीफे की भी मांग की गई है।

प्रदर्शन के बाद सभा को संबोधित करते हुए माकपा जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि जेएनयू के छात्र केवल अपने लिए नहीं, हमारे-आपके बच्चों के भविष्य के लिए भी लड़ रहे हैं, जिसे संघ संचालित मोदी सरकार नई शिक्षा नीति के जरिये बर्बाद कर देना चाहती है।

इस नीति का लब्बो-लुबाब यही है कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार अब कोई निवेश नहीं करेगी और पढ़ने-लिखने/पढ़ाने-लिखाने का पूरा खर्च बच्चों और उनके मां-बापों को ही उठाना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि यह नीति एक बेहतर इंसान गढ़ने के शिक्षा के बुनियादी उद्देश्य के खिलाफ है। इसलिए वे शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण नहीं, संकुचीकरण करना चाहते हैं। यह एक खतरनाक मनुवादी प्रोजेक्ट है, जो मानव सभ्यता द्वारा अर्जित हजारों सालों की बेहतरीन उपलब्धियों को मटियामेट करना चाहती है।

सभा को आगे संबोधित करते हुए भाकपा और मजदूर नेता हरीनाथ सिंह ने कहा कि मोदी सरकार एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को लागू करना चाहती है, जो अपने चरित्र में ही एक बेहतर इंसान गढ़ने के शिक्षा के बुनियादी उद्देश्य के खिलाफ है।

बकौल सिंह उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्हें सोचने-समझने, चिंतन-मनन करने वाले नागरिकों की जरूरत नहीं है। इसलिए वे शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण नहीं, संकुचीकरण करना चाहते हैं। यह एक खतरनाक मनुवादी प्रोजेक्ट है, जो मानव सभ्यता द्वारा अर्जित हजारों सालों की बेहतरीन उपलब्धियों को मटियामेट करना चाहती है।

सभा को माकपा के एस एन बेनर्जी, जनकदास कुलदीप, जनाराम कर्ष, भाकपा के एम एल रजक, संतोष सिंह, भाकपा (माले)-लिबरेशन के बी.एल.नेताम, रामजी शर्मा, आप के सत्येन्द्र कुमार यादव, धरम ललित, अमर दास, बसपा के धनंजय चंद्रा (पार्षद), कृष्णा राठौर, जनवादी महिला समिति की धनबाई कुलदीप, ऐपवा नेत्री उमा नेताम ने भी संबोधित किया।

उन्होंने कहा कि जेएनयू लड़ रहा है कि हर बच्चे को अच्छी और सस्ती शिक्षा का अधिकार मिले। जेएनयू में जो बच्चे पढ़ रहे हैं, 70 फीसद बच्चों के परिवारों की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है।

गरीब परिवारों के ये बच्चे पैसों की कृपा या राजनैतिक नेताओं की सिफारिशों या जोड़-तोड़ से नहीं आते, बल्कि अपनी प्रतिभा के दम पर जेएनयू में प्रवेश करते हैं और देश का नाम रोशन करते हैं।

इस जेएनयू ने जितने नायक हमारे देश को दिए हैं, उतने देश के शायद ही किसी विश्वविद्यालय ने पैदा किया हो। इसीलिए जेएनयू दुनिया के टॉप विश्वविद्यालयों में से एक है। यह सर्वोच्चता इसलिए भी है कि इसके परिसर के वातावरण को यहां के छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों — सबने मिलकर जनतांत्रिक बनाकर रखा हुआ है।

वाम नेताओं ने कहा कि इस देश की प्रगतिशील-जनवादी ताकतें इस देश को जो कुछ दे सकती हैं, उसका बेहतरीन प्रतिबिम्ब जेएनयू में दिखाई देता है। इसी बेहतरीन को बदतरीन में बदलने में मोदी सरकार जुटी हुई है।

इन नेताओं ने कहा कि छात्रों को शिक्षा मुफ्त मिलनी चाहिए। यह खैरात नहीं, देश के विकास के लिए निवेश है लेकिन मोदी सरकार हमारे बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने से ही महरूम करना चाहती है।

कहा गया कि सोचिए, देश में सबसे सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराने वाले विश्वविद्यालय में विभिन्न मदों में अदा की जाने वाली फीस यदि डेढ़ से बीस गुना तक बढ़ जाएगी, तो इस विश्वविद्यालय में हमारे बच्चे कैसे पढ़ेंगे?

इससे भी बड़ी बात यह कि जिन कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आज जेएनयू से कई गुना ज्यादा फीस देकर हमारे बच्चे जैसे-तैसे पढ़ रहे हैं, वहां की फीस भी यदि इसी अनुपात में डेढ़ से बीस गुना बढ़ा दी जाएगी, तो हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ी के भविष्य का क्या होगा?

प्रदर्शनकारी नेताओं ने जेएनयू की लड़ाई को पूरे देश की लड़ाई बनाने का संकल्प व्यक्त किया है, मोदी सरकार की शिक्षाविरोधी नीतियों को मात दी जा सके।

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