राजशाही में भाटो का चलन था… लेकिन अब लोकतंत्र है

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संदर्भ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि

नेशन अलर्ट/रायपुर.

छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्‍वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। दरअसल, विश्‍वविद्यालय की कार्यपरिषद में दो सदस्‍यों के मनोनयन विषय पर एक तरह से रार छिड़ गई है।

उल्‍लेखनीय है कि छत्‍तीसगढ़ कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्‍वविद्यालय के अधिनियम 2004 की धारा 22 (1)(2) में निहित प्रावधान अनुसार मुख्‍यमंत्री द्वारा विश्‍वविद्यालय की कार्यपरिषद के लिए दो सदस्‍यों का मनोनयन किया गया है। इस बारे में उच्‍च शिक्षा विभाग के अवर सचिव एआर खान ने 23 अगस्‍त को विश्‍वविद्यालय के कुल सचिव को हस्‍ताक्षर कर एक पत्र प्रेषित किया है।

कुल सचिव को लिखे गए पत्र में जिन दो सदस्‍यों की नियुक्ति का उल्‍लेख है वह दो साल के लिए सदस्‍य नियुक्‍त किए गए हैं। पत्र क्रमांक एफ8-1/2010/38-2 नया रायपुर अटल नगर रायपुर द्वारा यह पत्र 18 अगस्‍त को लिखा गया था जबकि इसमें हस्‍ताक्षर 23 अगस्‍त को किए गए हैं।

कौन है सदस्‍य, क्‍या है विवाद ?

दरअसल, छत्‍तीसगढ़ के रहने वाले राजकुमार सोनी व आवेश तिवारी जो कि पेशे से पत्रकार बताए जाते हैं को विश्‍वविद्यालय की कार्यपरिषद में सदस्‍य नियुक्‍त किया गया है। इनमें आवेश तिवारी को मूलत: उत्‍तरप्रदेश का निवासी बताया जाता है और वह बनारस के रहने वाले बताए जाते हैं। तिवारी व सोनी के नाम इस नियुक्ति के साथ ही किंतु परंतु भी हो गया है।

इस पर कई तरह की आपत्ति जताई जा रही है। फेसबुक पर तकरीबन मोर्चा सा खोल दिया गया है। सुरेश महापात्रा जैसे वरिष्‍ठ पत्रकार ने तो यह तक लिखा है कि ‘बुद्धिवेत्‍ताओं की बुद्धि पर निसंदेह कोई संदेह नहीं है’। उन्‍होंने संदेह उस प्रणाली पर जताया है जिस आधार पर छत्‍तीसगढ़ के माटीपुत्र मुख्‍यमंत्री ने यह चयन किया है।

महापात्रा फेसबुक में लिखते हैं कि ‘छत्‍तीसगढ़ का यह भी दुर्भाग्‍य ही है कि लपलपाती जीभ के साथ मीडिया के प्रशंसापति किसी भी मसले पर सरकार की सुखद प्रशंसा करने से नहीं चुकते।’ वे आगे लिखते हैं कि ‘छत्‍तीसगढ़ में कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर गठित इस संस्‍था में एक तरह से गलत निर्णय थोपा गया है’।

सुरेश महापात्रा ने अपनी फेसबुक वॉल पर आगे लिखा है कि ‘मेरा मानना है बहुत से योग्‍य और अतिवरिष्‍ठ कलमजीवी फिलहाल राजधानी में जीवनयापन कर रहे हैं… मैं सोचता हूं… राजशाही में भाटो का चलन था… अब लोकतंत्र है तो सत्‍ता प्रमुख को लोक लाज का ज्‍यादा भय होना चाहिए’।
उल्‍लेखनीय है कि सुरेश महापात्रा मूलत: बस्‍तर के दंतेवाड़ा के रहने वाले हैं। वह पेशे से पत्रकार हैं। सीजी इंपेक्‍ट नामक एक अखबार का नियमित तौर पर प्रकाशन कर उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। महापात्रा ने अपनी वॉल में आगे लिखा है कि ‘हो सकता है माननीय ने व्‍यक्तिगत आस्‍था के चलते यह नियुक्ति की हो पर महोदय क्षमा याचना के साथ मैं इसका विरोध करता हूं’।

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