छत्तीसगढ़ सरकार का उच्च न्यायालय में हार का सिलसिला अनवरत जारी

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बिलासपुर.

छत्तीसगढ़ सरकार का अपने उच्च न्यायालय में हार का सिलसिला अनवरत जारी है। इस बार फैसला सहकारी समितियों को भंग करने के मामले में आया है। इसमें भी सरकार की किरकिरी हुई है।

चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन द्वारा भंग की गई छत्‍तीसगढ़ की एक हजार 333 सहकारी समितियों को बहाल करते हुए शासन के फैसले को गलत ठहराया है।

डिवीजन बेंच ने राज्य शासन के निर्णय को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सहकारी समितियां अब काम नहीं करेगीं, अधिकारी अब काम करेंगे । यह आदेश गलत है । सहकारी समितियां निर्वाचित होती हैं। उन्हें ऐसे भंग नहीं किया जा सकता ।

डिवीजन बेंच ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया ।राज्य शासन ने प्रदेशभर की सेवा सहकारी समितियों के पुनर्गठन के लिए असिूचना जारी कर 30 जुलाई 2019 तक दावा-आपत्ति आमंत्रित की थी।

दावा-आपत्ति का निराकरण किए बिना शासन ने 30 अगस्त 2019 को प्रदेश की 1035 सेवा सहकारी समितियों को भंग कर दिया है।

इसके खिलाफ सेवा सहकारी समिति भैंसमा के सदस्य लक्ष्मण उरांव, बरपाली समिति के मोहनलाल कंवर, जीवन लाल कंवर समेत अन्य समितियों के सदस्यों ने वकील केशव गुप्ता व रमाकांत पांडेय के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में राज्य शासन द्वारा लिए गए निर्णय की खिलाफत करते हुए कहा था कि सहकारी समितियों का निर्वाचन पांच वर्ष के लिए हुआ है। निर्वाचित संस्थाओं को बिना किसी कारण के भंग करना और प्रशासकीय समिति का गठन करना समझ से परे है।

सहकारिता आंदोलन खत्म करने की योजना

याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा प्रदेश से सहकारिता आंदोलन को खत्म करने की योजना की ओर भी इशारा किया था। चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू की डीबी ने सभी याचिकाओं को क्लब करने के साथ ही सुनवाई प्रारंभ की ।

बीती सुनवाई के दौरान शासन व याचिकाकर्ताओं के वकीलों की ओर से बहस पूरी किए जाने के बाद डिवीजन बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था । शुक्रवार को डीबी ने अपना फैसला सुनाते हुए राज्य शासन के निर्णय को रद कर दिया।

क्या है मामला

23 जुलाई को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर प्रदेश की एक हजार 333 सहकारी समितियों को भंग करते हुए आदेश जारी किया था। इसमें कहा था कि समितियां भंग की जाती हैं।आगामी समिति निर्वाचित होते तक अधिकारी कार्यभार सम्हालेंगे।

राज्य शासन के निर्णय के बाद प्रदेशभर की सभी समितियों को तत्काल प्रभाव से भंग करते हुए अधिकारियों ने कुर्सी संभाल ली थी। शासन के इस फैसले को लेकर राज्य में तीखी प्रतिक्रिया भी देखने को मिली थी।

विपक्षी भाजपा ने सहकारिता आंदोलन को कुचलने की साजिश बताते हुए भाजपा के जनप्रतिनिधियों को बेदखल करने का आरोप लगाया था।

ऐसे काम करती हैं समितियां

प्रदेशभर में सहकारी समितियों की संख्या -1हजार 333
प्रदेश में गांवों की संख्या- 20 हजार 796
सहकारी समितियों में सदस्यों की संख्या- 26 लाख 9 हजार 9025
ऋणी सदस्यों की संख्या- 15 लाख 31 हजार 282

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