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35 फीट गहरी बावडी़ जो कभी नहीं सूखी !

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नेशन अलर्ट/9770656789

सुजानदेसर.

यहाँ सैकड़ों वर्ष पुराना बाबा रामदेव का एक ऐसा मँदिर है जहाँ तकरीबन 35 फीट गहरी बावडी़ मौजूद है जोकि कभी नहीं सूखी. इस मँदिर में पूजा का अधिकार कच्छावा जाति के लोगों का ही है.

दोपहर के वक्त जब “नेशन अलर्ट” की टीम यहाँ पहुँची तब पुजारी के आसन पर तेजकरण जी बैठे नजर आए. उन्होंने मँदिर स्थापना से लेकर अब तक के क्रियाकलापों को लेकर बहुत सी जानकारी उपलब्ध करवाई. उन्होंने बताया कि मँदिर की स्थापना वर्ष 1773 में हुई होगी.

कौन थे सँत हीरानँद . . ?

मँदिर के इतिहास पर गौर करें तो सँत हीरानँद जी का नाम सुनाई पड़ता है. ऐसी मान्यता है कि सँत हीरानँद की भक्ति का ही प्रताप था कि बाबा रामदेव ने स्वयँ उन्हें यहाँ आकर साक्षात दर्शन दिए थे.

पुजारी तेजकरण कच्छावा ने बताया कि यहाँ साल में दो बार मेला लगता है. भादवे की दशमी और माघ की दशमी को मेला भरता है. इस मेले में बीकानेर के आस पास शहरों से लेकर देशभर के लोग आते है. मँदिर को लेकर कई खास मान्यता है.

पुजारी तेजकरण के बताए मुताबिक यहाँ बाबा रामदेव जी ने कई पर्चे भी दिए है. वे बताते हैं कि
सैकड़ों साल पहले बाबा रामदेव बीकानेर आए थे. उनके आने के प्रयोजन को स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं कि सँत हीरानंद माली की भक्ति ने बाबा को यहाँ आने मजबूर किया था.

जोरावर सिंह के समय स्थापित हुआ . . .

बताया जाता है कि सुजानदेसर के बाबा रामदेव जी मँदिर की स्थापना बीकानेर के राजा जोरावर सिंह के समय की गई थी. कहा जाता है कि एक बार बीकानेर के महाराजा जोरावर सिंह द्वारा बाबा रामदेव जी के प्रसिद्ध मँदिर रुणिचा में जाकर बाबा रामदेव जी की समाधि पर माथा टेकने सहित परिक्रमा करने की मन्नत माँगी गई थी.

यह मन्नत किन्हीं कारणोंवश पूरी नहीं हो पा रही थी. राजा की इस मन्नत का पता जब उनकी प्रजा को चला तब उनमें से एक विद्वान ने आकर राजा को इसका उपाय सुझाया. विद्वान ने कहा राजन हमारे यहाँ से एक कोस दूर बाबा रामदेव जी के एक परम भक्त आए हुए हैं जिनका नाम हीरानंद माली है.

विद्वान के कहे मुताबिक वे बाबा रामदेव जी के कपड़े के घोड़े को लेकर इधर-उधर घूम घूम कर बाबा का प्रचार करते हैं. उन्होंने बीकानेर के नजदीक एक छोटा सा मँदिर बनवाया है. वहीं पर रूककर बाबा के भजन कीर्तन करते हैं. मेरी आपसे यह सलाह रहेगी कि आप वहाँ जाकर हीरानँद जी से ही अपनी मन्नत के बारे में बातचीत करें. वे जरूर आपको कोई रास्ता बताएँगे.

जोरावर सिंह को बात जँची. उन्होंने वैसा ही किया. बताते हैं हीरानँद जी ने उनसे कहा कि आप जिस जगह पर आए हैं उस जगह को बाबा का आशीर्वाद है. यहाँ आकर दर्शन करना मतलब रूणिचा जाकर दर्शन करने जैसा ही है. तब राजा जोरावर सिंह ने मँदिर स्थापना में बढ़ चढ़कर सहयोग किया.

इस मँदिर को एक कोष वाले रामदेव जी भी कहते हैं क्यूं कि बीकानेर से इसकी इतनी ही दूरी है. मान्यता के मुताबिक सैंकड़ों वर्षों से गाँव में कोई दो मँजिला मकान नहीं बना है. जो बना भी है तो उसकी ऊँचाई मँदिर के गुँबज से कम ही है. माना जाता है कि भक्त छोटा ही अच्छा होता है.