रिश्वत लेने नहीं… देने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे अग्रवाल

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रायपुर।

रिश्चत लेने नहीं बल्कि देने के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे बाबूलाल अग्रवाल। और तो और छत्तीसगढ़ का नाम इन्होंने इस मामले में भी ‘रौशनÓ किया था कि राज्य के पहले आईएएस अफसर थे जिन्होंने जेल यात्रा की। जेल भी कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि हिंदुस्तान की सर्वाधिक सुरक्षित मानी-जाने वाली तिहाड़ जेल।

उल्लेखनीय है कि बाबूलाल अग्रवाल 1988 बैच के आईएएस थे। छत्तीसगढ़ सरकार में उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव थे। गिरफ़्तारी के बाद अग्रवाल को राज्य सरकार की ओर से निलंबित कर दिया गया था। अब उन्हें सेवामुक्त कर दिए जाने की खबर आई है। इसके पहले इसी सप्ताह राज्य के दो आईपीएस अधिकारियों को भी सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी थी।

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अग्रवाल किस केस में गए थे जेल?
सीबीआई में चल रहे अपने मामले को खत्म करने के लिये बाबूलाल अग्रवाल पर कथित रुप से पीएमओ के अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप है। फरवरी में सीबीआई ने बाबूलाल के घर छापा मार कर कई घंटों तक पूछताछ की थी और दस्तावेजों को जब्त किया था।

अग्रवाल का नाम वर्ष 2010 में भी आय से अधिक संपत्ति के मामले में चर्चा में आया था। तब आयकर विभाग ने कार्रवाई की थी। बाबूलाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने रायपुर जिले के खरोरा के 220 गांव वालों के नाम से फर्जी बैंक खाते खुलवा कर उसमें भारी निवेश किया था। उन पर 253 करोड़ की संपत्ति तथा 85 लाख के बीमा की खबरें सुनाई देते रहीं थीं।

फिर भी पा लिया था प्रमोशन
बाबूलाल अग्रवाल किस हद तक सरकार के चहेते थे अथवा उनकी हैसियत क्या थी यह यदि जानना समझना हो तो उनके पुराने रिकॉर्ड को देखिए। आय से अधिक संपत्ति के मामले में पुराने प्रकरण के मद्देनजर बाबूलाल अग्रवाल निलंबित किए गए थे। …लेकिन, बाबूलाल की सेटिंग देखिए कि न केवल पाक-साफ घोषित किए गए बल्कि सरकार से उन्होंने प्रमोशन भी पा लिया था।

आयकर विभाग ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया था। आरोप है कि इसी मामले को खत्म करने के लिये कथित रुप से डेढ़ करोड़ की रिश्वत देने की कोशिश की गई। यहां तक कि इस मामले में सीबीआई ने रिश्वत के रुप में दिये जाने वाला दो किलोग्राम सोना भी जब्त किया।

करोड़ों की संपत्ति बनाई
तिहाड़ जेल में बंद रहे बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2006 से 2009 के बीच बाबूलाल ने भ्रष्टाचार करके 36 करोड़ की संपत्ति बनाई थी। वर्ष 2010 में प्रवर्तन निदेशालय ने बाबूलाल के खिलाफ मामला दर्ज किया था। यह मामला फाइलों में उलझा रहा।

प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि बाबूलाल ने भ्रष्टाचार से की गई कमाई को छुपाने के लिये 446 ग्रामीणों के नाम से बेनामी खाता खोल लिया। इन ग्रामीणों को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था। बाद में इन्हीं खातों की रकम को अपनी कंपनी में लगवा कर रकम को सफेद करने की कोशिश की गई। बाबूलाल अग्रवाल की 36 करोड़ रुपये की संपत्ति पहले ही अटैच की जा चुकी है।

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