जब थानेदार मंडी सचिव को फांसने नहीं झूके

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राजनादगांव।

राजनीतिक दबाव किस हद तक अफसरों पर रहता है यह एक बार फिर सामने आया है. मामला इस बार खुज्जी व डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. खुज्जी के एक पूर्व विधायक ने मामले में नाजायज हस्तक्षेप किया और इधर डोंगरगांव मंडी सचिव कथित कार्रवाई को लेकर दबाव में आ गए. मंडी सचिव तो किसी तरह बच गए लेकिन अब मामले में प्रशासनिक अधिकारियों पर फजीहत की मार पड़ी है.

सूत्रों के अनुसार बुधवार को डोंगरगांव क्षेत्र के ग्राम गिदर्री के एक व्यापारी द्वारा चोरी-छुपे माल को एक मालवाहक में लोड करने की सूचना मंडी सचिव बाला राम चंद्राकर को मिली। इसके बाद वे शाम को करीब चार-पांच गिदर्री में उस व्यापारी के ठिकाने पर पहुंचे और आवश्यक जांच-पड़ताल करने लगे।

उसी बीच उस व्यापारी ने खुज्जी विधानसभा क्षेत्र के एक बड़े भाजपा नेता को फोन कर सूचना दी कि मंडी सचिव द्वारा मेरी दुकान में जबरिया छापा मारा जा रहा है। व्यापारी ने नेता को यह भी बताया कि वह भाजपा का कट्टर समर्थक और कार्यकर्ता है। इसके बाद नेताजी का फोन एसडीएम को पहुंचा और मामले को दबाने के साथ ही मंडी सचिव पर कार्रवाई करने का आदेश दिया गया। चूंकि नेताजी काफी प्रभावशाली शख्स हैं, इसलिए उनका आदेश एसडीएम के सर आंखों पर लेने वाली बात थी।

एसडीएम ने थानेदार को दी सूचना
नेताजी की बातों पर तत्काल अमल करते हुए एसडीएम ने अपने आफिस में ही बैठे-बिठाए थानेदार को फोन पर सूचना देकर मंडी सचिव चंद्राकर को थाने में बुलवाकर उसका मेडीकल चेकअप करने का मौखिक आदेश दिया गया। फिर थाने से मंडी सचिव चंद्राकर को फोन कर बुलवाया गया। शाम को करीब साढ़े छह बजे चंद्राकर थाने पहुंचे। बताया गया है कि चंद्राकर को शराब पीने की आदत है और उस दौरान वे हल्के नशे में थे।

एसडीएम के मौखिक आदेश पर अमल करते हुए पुलिस वालों ने डॉक्टरी मुलाहिजा कराने का आदेश थानेदार को दिया। फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र भेजकर मुलाहिजा कराया गया। बीएमओ डॉ. रागिनी चंद्रे ने जांच में हल्का एल्कोहल पाए जाने की रिपोर्ट दी। फिर चंद्राकर को पुन: थाने में ले जाया गया। उसके बाद एसडीएम द्वारा थानेदार को मंडी सचिव पर धारा 151 के तहत कार्रवाई करने का आदेश किया गया।

थानेदार ने कहा-नहीं करूंगा कार्रवाई!
थानेदार ने एसडीएम की बातों को यह कहकर खारिज कर दिया कि वे बिना किसी ठोस आधार के ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकते। उसी बीच इस मामले की भनक लगने पर डोंगरगांव के कुछ प्रमुख अखबारों के पत्रकार भी थाने पहुंचे, तब तक मंडी सचिव को तहसीलदार के साथ कागजी कार्रवाई के लिए रवाना कर दिया गया था।

इसके बाद पत्रकारों का दल शाम को करीब सात-साढ़े सात बजे एसडीएम आफिस पहुंचा, जहां एसडीएम दस्तावेजों में हस्ताक्षर करने में मशगूल रहे। मंडी सचिव के बारे पूछने पर दोनों ने अनभिज्ञता जताई। उसी बीच पता चला कि सचिव को तहसीलदार द्वारा अपने दफ्तर में बिठाकर बयान लिया जा रहा है, तब पत्रकार तहसील आफिस पहुंचे और मामले को लेकर तहसीलदार को विज्ञप्ति जारी करने की मांग की, जिस पर तहसीलदार ने इंकार कर दिया।
तहसीलदार ने थानेदार को फोन कर बताया कि एसडीएम ने मंडी सचिव पर धारा 151 के तहत कार्रवाई करने कहा है, इसलिए सचिव को थाने ले जाओ, लेकिन थानेदार ने तहसीलदार की बातों को मानने से साफ इंकार कर दिया। आखिरकार मंडी सचिव को छोड़ दिया गया।

प्रशासनिक अफसर जांच के घेरे में
इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम को लेकर डोंगरगांव के तीनों प्रशासनिक अफसर जांच के घेरे में आ गए है। मामले को लेकर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मंडी सचिव शराब पीने का शौकीन है, लेकिन उन्हें ड्यूटी पीरियड में कभी नशे की हालत में नहीं पकड़ा गया है। इतना जरूर है कि विगत दिनों मंडी प्रांगण में आयोजित निषाद समाज के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री आने वाले थे, तब मंडी के कुछ अन्य कर्मचारियों को शराब पीते पकड़ा गया था।

इस आधार पर अधिकारियों को सचिव पर शक है कि उसी की सह पर मंडी में शराबखोरी होती है। सवाल यह भी कि सचिव ने सूचना के आधार पर किसी व्यापारी की दुकान की तलाशी लेकर कोई गलत काम नहीं किया है। इतना ही नहीं, जब उसे थाने में बुलवाया गया, तब तक उसकी ड्यूटी का टाइम पूरा हो चुका था। सचिव यदि ड्यूटी से छूटने के बाद शराब पीता है तो यह उसका निजी मामला है, जिस पर 151 की कार्रवाई कैसे और किस आधार पर की जा सकती है?

क्या सिर्फ सत्तापक्ष के किसी बड़े नेता के कहने पर और संदेह के दायरे में आने वाले भाजपा कार्यकर्ता और व्यापारी को बचाने के लिए मंडी सचिव को बलि का बकरा बनाया जा सकता है? प्रशासनिक अफसरों से ज्यादा तो थानेदार समझदार निकला, जिन्होंने बिना कोई ठोस आधार के उनके आदेश के बावजूद धारा 151 की कार्रवाई करने से इंकार कर दिया।

आशंका जताई जा रही है कि अपनी फजीहत का बदला लेने के लिए अफसरों द्वारा मंडी सचिव को इसी तरह के किसी मामले में बेवजह फंसाकर परेशान किया जा सकता है, क्योंकि वे अगले माह रिटायर होने वाले हैं। सवाल यह भी है कि सचिव द्वारा उस व्यापारी की दुकान की तलाशी लेना क्या नाजायज था?

बहरहाल यह जांच का विषय है कि गिदर्री के उस व्यापारी की दुकान में ऐसा क्या-कुछ अवैध सामान था, जिस पर उसने खुद को बचाने के लिए बड़े भाजपा नेता का सहारा लिया। कलेक्टर को चाहिए कि इस पूरे मामले की जांच कराकर आवश्यक कार्रवाई करे।

पत्रकारों ने गलत दिशा दी : भाटिया
इधर खुज्जी से तीन मर्तबा विधायक रहे रजिन्दर पाल सिंह भाटिया मामले को लेकर पत्रकारों को ही आरोपी ठहराते हैं. उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने गलत खबर प्रकाशित की है. भाटिया यह भी स्वीकारते हैं कि उन्होंने ही एसडीएम को फोन किया था. एसडीएम और पत्रकारों के बीच किस बात को लेकर खींचतान है यह उन्हें नहीं मालूम लेकिन उन्होंने कहा कि धारा 151 के तहत मंडी सचिव पर इसलिए कार्रवाई नहीं हो पाई क्योंकि वह 60 साल से अधिक उम्र का है. भाटिया यह भी कहते हैं कि वह दारु पीकर गांवों में वसूली करते रहा है और इस बार उसने 10 हजार रुपए मांगे थे. 2 हजार लेकर वह भाग गया था.

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