जिंदाबाद से मुर्दाबाद में क्‍यूं हुआ नारा तब्‍दील ?

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नेशन अलर्ट/रायपुर.

105 कर्मचारी संघों के 5 लाख कर्मचारियों के खुले समर्थन के बाद भी प्रदेश में कर्मचारी हड़ताल के एकाएक समाप्‍त हो जाने से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश के जिन पंडालों में कर्मचारी नेता कमल वर्मा जिंदाबाद के नारे लग रहे थे उन्‍हीं पंडालों में हड़ताल के अचानक समाप्‍त हो जाने के बाद कमल वर्मा मुर्दाबाद के नारे लगने लगे ऐसा क्‍यूंकर हुआ यह सोचने का विषय है।

तकरीबन 20 माह से केंद्र के समान महंगाई भत्‍ते और 7वें वेतनमान के हिसाब से गृह भाड़ा भत्‍ता छत्‍तीसगढ़ के कर्मचारी शासन से मांग रहे थे। 19 दिसंबर 2020 से इसी को लेकर वह चरणबद्ध आंदोलन कर रहे थे। अगस्‍त में कर्मचारियों ने हड़ताल भी शुरू कर दी। 2 सितंबर तक कर्मचारियों के काम पर लौटने की अपील और चेतावनी के मद्देनजर हड़ताल समाप्‍त करने की बात होने लगी।

1 सितंबर की बैठक में 90 फीसदी कर्मचारियों का था समर्थन

1 सितंबर को बैठक के भविष्‍य को लेकर कर्मचारियों ने बैठक की थी। तकरीबन 90 फीसदी कर्मचारी हड़ताल जारी रखने का समर्थन कर रहे थे। इसके बावजूद कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के संयोजक कमल वर्मा ने अन्‍य सदस्‍यों के साथ कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के निवास में बैठक कर हड़ताल समाप्ति की घोषणा कर दी गई। अब इस पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं।

कर्मचारी संघ से जुड़े रहे विद्याभूषण दुबे इस आंदोलन के यूं अचानक समाप्‍त हो जाने पर कहते हैं कि ईंट गारे से खड़ा आंदोलन ताश के महल के समान इस तरह से अचानक गिर गया है। दुबे कहते हैं कि खाया पिया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा बारहआना जैसा जुमला फेडरेशन की स्‍ट्राइक के अचानक समाप्‍त हो जाने के तौर तरीकों पर फिट बैठता है।

पूछ रहे सवाल

दुबे यहीं पर नहीं रूके बल्कि उन्‍होंने संयोजक रहे कमल वर्मा से कुछ सवाल भी किए हैं। जब 14 अगस्‍त को ही माननीय मुख्‍यमंत्री जी ने हड़ताल नहीं करने की अपील की थी इसके बावजूद हड़ताल की गई। 5 दिवसीय हड़ताल का वेतन मिल जाने सहित अन्‍य मांगों को दीपावली के समय पूरा करेंगे का प्रस्‍ताव देने वाले मुख्‍यमंत्री की बात को क्‍यूंकर नजरअंदाज कर हड़ताल की गई ?
स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारी संघ से जुड़े रहे विद्याभूषण दुबे एक बड़े आंदोलन को खड़ा करने का श्रेय कमल वर्मा व कर्मचारियों के आक्रोश को देते हैं। इसके बावजूद वे सवाल करते हैं कि कर्मचारी खाली हाथ घर क्‍यूं लौटे ? इसका कारण बताते हुए दुबे कहते हैं कि सफल आंदोलन के बावजूद अपरिपक्‍व नेतृत्‍व इसका मूलभूत कारण है।

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