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नईदिल्ली / रायपुर.
छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के लिए क्या 36 तरह की परेशानी पैदा हो ( की जा रही ) रही है ? क्या कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक अपनी सरकार से नाराज चल रहे हैं ? क्या नाराज विधायकों को अब संतुष्ट किए जाने की कोशिशें होने लगी हैं ? ये चंद ऐसे सवाल हैं जो राजनैतिक गलियारों में इन दिनों बडी़ तेजी से घूम रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि सरकार बनने के तुरंत बाद मंत्रिमंडल में स्थान नहीं बना पाए कांग्रेसी विधायकों को राज्य के निगमों – मंडलों में लिए जाने की उम्मीद थी.
आज कल करते करते इस बात को तकरीबन डेढ़ वर्ष हो गए थे. इसी दौरान पहले मध्यप्रदेश और उसके बाद राजस्थान में आए राजनैतिक भूचाल का असर गाहेबेगाहे छत्तीसगढ़ पर भी पडा़.
आनन फानन में छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने विधायकों को निगम-मंड़लों में नियुक्ति देने का सिलसिला प्रारंभ किया. लेकिन यहां पर भी बात वरिष्ठ विधायकों की कथित नाराज़गी पर आकर लटक गई.
बावरिया – पांडेय से पुनिया ने लिया सबक
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे. इन तीनों राज्यों में कांग्रेस अध्यक्ष व प्रभारी महासचिव के रुप में कमलनाथ – दीपक बावरिया ( गुजरात ), सचिन पायलट – अविनाश पांडेय ( महाराष्ट्र ), भूपेश बघेल – पीएल पुनिया ( उत्तर प्रदेश ) ने टीम वर्क के साथ काम कर सरकार बनाई थी.
मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष रहे कमलनाथ व भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने. जबकि राजस्थान में गुजरात के प्रभारी महासचिव रहे अशोक गहलोत को एक बार फिर राजस्थान का मुख्यमंत्री चुन लिया गया था.
मतलब वहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सचिन पायलट की रणनीति मात गई थी. उन्हें उप मुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पडा़ था जिससे वह नाराज़ चल रहे थे. इसका खामियाजा अब जाकर कांग्रेस को राजस्थान में उठाना पड़ रहा है.
यही हाल मध्यप्रदेश में भी हुआ. ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराज़गी इतनी बढी़ कि कमलनाथ पूर्व मुख्यमंत्री हो गए और भाजपा की प्रदेश सरकार में वापसी हो गई.
मध्यप्रदेश के कांग्रेसी प्रभारी दीपक बावरिया हुआ करते थे. वह काफी दिनों तक इस बात के लिए प्रयास करते रहे कि असंतुष्ट विधायकों-मंत्रियों की नाराज़गी दूर की जाए लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
अंततः ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्रियों और कांग्रेस से असंतुष्ट चल रहे विधायकों ने ही कांग्रेस को मध्यप्रदेश सरकार से बेदखल कर दिया. हारकर दीपक बावरिया ने भी प्रदेश प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया.
ऐसा ही कुछ इन दिनों राजस्थान में चल रहा है. हालांकि वहां अब तक कांग्रेस की सरकार कायम है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय पूर्ववत् आत्मविश्वासी नज़र आते हैं.
लेकिन दीपक बावरिया – अविनाश पांडेय की स्थिति को देखते हुए छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया ने कोई न कोई सबक लिया होगा. तभी तो उन्होंने बडी़ तेजी से मध्यप्रदेश-राजस्थान में उपजे बवंडर के बाद छत्तीसगढ़ में नियुक्तियों का दरवाज़ा खुलवाया.
फिर भी शर्मा, शुक्ल और साहू नहीं हुए तैयार
इसके बावजूद वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा, प्रदेश के प्रथम पंचायत मंत्री अमितेश शुक्ल और धनेंद्र साहू जैसे ओबीसी नेता निगम-मंड़लों में पद लेने तैयार नहीं हुए.
सत्यनारायण शर्मा, अमितेश शुक्ल की इच्छा मंत्री बनाए जाने की रही थी. धनेंद्र साहू की राह में रोडे़ उसी वर्ग के नेताओं ने पैदा किए थे जिस वर्ग से वह आते हैं.
इससे पीएल पुनिया का सारा किया धरा पानी में बह जा रहा था. इसके बावजूद पुनिया ने तीनों वरिष्ठ विधायकों से सतत संवाद कायम रखा. अब संवाद के सकारात्मक नतीजे आने वाले हैं ऐसा बताया जाता है.
आलाकमान से ली हरी झंडी़
राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि तीनों वरिष्ठ विधायकों सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू, अमितेश शुक्ल और उनके समर्थकों में बढ़ती नाराज़गी की खबरें दिल्ली दरबार तक पहुंचने लगी थी.
इधर पुनिया भी पल-पल बनती-बिगड़ती स्थिति पर काम करते रहे. उन्होंने एक तरफ शर्मा-साहू-शुक्ल को तैयार किया तो दूसरी तरफ आलाकमान से भी परिस्थितियां पर चर्चा की.
अब आलाकमान से उन्हें हरी झंडी मिल गई है ऐसा बताया जाता है. आने वाले दिनों में वरिष्ठ विधायकों को निगम-मंड़लों में नियुक्ति दे दी जाएगी ऐसी खबर चंहुओर से आ रही है.
इसके बाद भी मूलभूत सवाल रह जाता है कि क्या वरिष्ठ विधायक अपनी ही सरकार से नाराज़ थे ( हैं ) ? क्या उन्हें मना लिया गया है ? यदि ऐसा है तो शायद ही छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश-राजस्थान की कहानी दोहराई जाए.