कैसे खुले बेनामी खाते, जांच के दायरे में बैंक अफसर

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रायपुर।

प्रदेश के बहुचर्चित आईएएस बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण में जांच का दायरा बढ़ रहा है. यह दायरा अब उन बैंक अफसरों तक पहुंच गया है जिन्होंने बाबूलाल अग्रवाल के इशारे पर बेनामी खाते खोले थे. आने वाले दिनों में बैंक अफसर मुसीबत का सामना करेंगे.

प्रदेश के संभवत: इकलौते आईएएस अफसर होंगे बाबूलाल अग्रवाल जिन्होंने तिहाड़ जेल तक का सफर किया है. बताया जाता है कि अग्रवाल अचानक ही मुश्किल में नहीं आए हैं. उनके खिलाफ पहले से आयकर, प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के स्तर पर जांच चल रही थी.

एक भी ग्रामीण बैंक नहीं पहुंचा था
उल्लेखनीय है कि मामला वर्षों पुराना है. इस मामले में पहले तो आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के घर में छापा पड़ा था. उनके घर से ही इस मामले की जड़ सामने आई थी. उनके पास से बेनामी खातों के दस्तावेज जब्त हुए थे. इन खातों से करोड़ों का लेन-देन हुआ था और यही अग्रवाल की काली कमाई का पहला सबूत बना.

बेनामी खातों और काली कमाई से जुड़े इस मामले की जांच को प्रवर्तन निदेशालय ने आगे बढ़ाया. पता चला कि अग्रवाल ने एक फर्जी कंपनी बनाई जिसके सहारे वो अपनी काली कमाई को ठिकाने लगा रहे थे. इसके लिए उन्होंने ग्रामीणों के नाम 446 बैंक खाते खुलवाए. ये सभी खाते ग्रामीणों की बगैर जानकारी और उपस्थिति के खोल दिए गए. यूनियन बैंक की रामसागरपारा और पंडरी शाखाओं में खोले गए इन खातों से करोड़ों का लेनदेन हुआ.

करोड़ों की हेराफेरी
इन खातों का संचालन अग्रवाल के भाईयों और सीए सुनील अग्रवाल के पास रहा. उन्होंने इन खातों के माध्यम से करोड़ों रुपए का लेन देन किया. पहले पैसे 13 फर्जी कंपनियों में भेजे गए और फिर वहां से मेसर्स प्राईम इस्पात नाम की फर्जी कंपनी में उन 13 कंपनियों का निवेश दर्शाकर लगभग 39 करोड़ रुपए की हेराफेरी की गई.

ये सब बगैर बैंक प्रबंधन की मिलीभगत के आसान नहीं हो सकता. करोड़ों रुपए का लेनदेन वास्तविक खाताधारक के बगैर होता रहा और बैंक अधिकारी इसमें बराबर अपनी सहभागिता बनाए रहे. प्रवर्तन निदेशालय की जांच अब जिस तेजी से आगे बढ़ रही है उससे तय है कि तलवार की दूसरी धार से बैंक अधिकारियों को भी खतरा है.

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