अशोक गहलोत ने कैसे और क्यों सचिन पायलट को विद्रोह के लिए ‘उकसाया’

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कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पायलट को पुलिस नोटिस भेजे जाने का असल उद्देश्य, गहलोत सरकार को अस्थिर किए बिना, उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर ढकेल देना था.

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डीके सिंह

नई दिल्ली.

राजस्थान में मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए कौन जिम्मेदार है जिसने कांग्रेस नीत सरकार की स्थिरता को खतरे में डाल दिया- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत या उनके डिप्टी सचिन पायलट?

ऊपरी तौर पर देखने से तो पायलट ही एक ऐसे बगावती कांग्रेसी नजर आते हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर मुख्यमंत्री पद की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए पार्टी तोड़ने पर तुले हैं.

हालांकि, पूरे प्रकरण से वाकिफ कम से कम चार वरिष्ठ कांग्रेसी पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वह गहलोत है, जिन्होंने अपने डिप्टी और संभावित उत्तराधिकारी से ‘छुटकारा’ पाने के लिए ‘जानबूझकर’ संकट को दावत दी.

इन पदाधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने यह सब तब किया जब वह 200 सदस्यीय विधानसभा में अपने बहुमत को लेकर आश्वस्त हो गए. हाल के राज्यसभा चुनाव में, कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों को पार्टी के 107 विधायकों के अलावा 13 निर्दलीय और छोटे दलों के तीन अन्य सदस्यों के मिलकर 123 वोट मिले थे.

मुख्यमंत्री ने चारा डाला और पायलट झांसे में आ गए

पायलट के बगावती तेवरों की शुरुआत राजस्थान पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) की तरफ से उन्हें, मुख्यमंत्री और अन्य को एक नोटिस जारी किए जाने के साथ हुई जो कांग्रेस सरकार गिराने के कथित प्रयास के सिलसिले में दो भाजपा नेताओं की गिरफ्तारी के संबंध में बयान दर्ज कराने के लिए था.

राजस्थान पुलिस से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को नोटिस भेजने का ‘निर्देश’ मिलने के बाद, एसओजी ने इसकी फिर से पुष्टि के लिए आला अधिकारियों से संपर्क किया था. ये नोटिस मुख्यमंत्री, जो गृह विभाग भी संभालते हैं, की तरफ से निर्देश फिर दोहराए जाने के बाद जारी किए गए.

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पायलट यह अच्छी तरह से समझ सकते थे कि भले ही ये नोटिस कई लोगों को भेजे गए हों लेकिन मुख्य निशाना वही हैं.

उनका कहना है कि पायलट महसूस कर रहे थे कि मुख्यमंत्री की तरफ उन्हें ‘राजनीतिक रूप से खत्म करने’ का प्रयास किया जा रहा है, और उन्होंने अपनी आशंकाओं को पिछले हफ्ते आलाकमान के सामने रखा था. उन्हें दिल्ली दरबार से कोई जवाब नहीं मिला, और इसी बीच आए एसओजी के नोटिस ने उन्हें विद्रोह की हद तक जाने के लिए भड़का दिया.

एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने विस्तार से दिप्रिंट को बताया, ‘यही तो अशोक गहलोत चाहते थे. उन्होंने पायलट की छवि खराब कर दी है. यदि गहलोत सरकार बचाने में सफल रहे, जिसके बारे में वह आश्वस्त हैं, तो यह पार्टी में पायलट की स्थिति को खासी क्षति पहुंचाने वाला साबित होगा. मुख्यमंत्री ने चारा डाला और पायलट झांसे में आ गए.’

सरकार में कांग्रेस के पदाधिकारी बताते हैं कि मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी के बीच ‘दुश्मनी’ सभी को नजर आ रही थी. एक वीडियो कांफ्रेंस जिसमें सभी जिला कलेक्टर और पुलिस अधिकारी हिस्सा ले रहे थे, में जब मुख्य सचिव ने गहलोत से पूछा कि क्या उन्हें डिप्टी सीएम को संबोधन के लिए आमंत्रित करना चाहिए तो मुख्यमंत्री ने कहा, ‘अरे छोड़ो (भूल जाओ).’

पायलट, जो उसे वीडियो कांफ्रेंस में भाग भी ले रहे थे, इस झिड़की को सुन सकते थे.

उपमुख्यमंत्री के करीबी एक कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि यहां तक कि गहलोत लोक निर्माण विभाग, जो पायलट के पास था, को फंड जारी करने में भी कोताही कर रहे थे.

गहलोत ने ऐसा जोखिम क्यों उठाया?

आखिर, गहलोत ने इतना जोखिम भरा जुआ क्यों खेला, जो शायद उनकी सरकार को गिरा भी सकता है? कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सीएम 2023 के बाद की जमीन तैयार करने में जुटे हैं.

कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि अगर अगले चुनाव तक पायलट साथ रहते हैं तो कांग्रेस को फिर जनादेश मिलने की स्थिति में वह पार्टी और सरकार में भी गहलोत के निर्विवाद उत्तराधिकारी बन जाएंगे.

इस पदाधिकारी ने कहा, ‘आलाकमान ने 2018 में पायलट को मुख्यमंत्री पद देने से मना कर दिया था, लेकिन इसकी कोई वजह नहीं है कि 2023 के बाद, जब तक गहलोत लगभग 73 साल के हो जाएंगे, राज्य कांग्रेस में युवा नेता को प्राथमिकता देने से इनकार किया जाए. तब तो इस अनुभवी नेता को अपने कथित उत्तराधिकारी के लिए रास्ते से हटना चाहिए. दुर्भाग्य से, सचिन उनका दीर्घकालिक गेम प्लान भांप नहीं पाए.’

तत्काल संदर्भ की बात करें तो गहलोत चाहते थे कि पायलट को राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया जाए, जो उन्होंने जनवरी 2014 से संभाल रखा है.

उन्हीं नेता ने आगे कहा, ‘यद्यपि पायलट को सरकार में हाशिये पर डाल दिया गया था लेकिन राज्य इकाई के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पार्टी में पकड़ बना रखी थी. गहलोत यही खत्म करना चाहते थे. लेकिन एसओजी नोटिस का असल उद्देश्य, गहलोत सरकार को अस्थिर किए बिना, पायलट को ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर भेज देना था.’

अगर पायलट रास्ते से हट जाते हैं, तो गहलोत अपने बेटे वैभव का राजनीतिक भविष्य बनाने पर फिर से ध्यान केंद्रित कर पाएंगे, जिसे पिछले लोकसभा चुनावों में अपने पिता के गढ़ जोधपुर में हार जाने के बाद गहरा झटका लगा था.

( साभार : द प्रिंट )

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