कोयला खदानों की नीलामी के केंद्र के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची

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नेशन अलर्ट / 97706 56789

रांची.

झारखंड सरकार कोयला खदानों की वाणिज्यिक नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और उसने नीलामी में राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है. केंद्र सरकार के इस कदम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि कोयला खदानों की नीलामी को लेकर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है. उन्होंने कहा कि कोयला खदान की नीलामी से पहले केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को विश्वास में लेने की जरूरत थी, क्योंकि झारखंड में खनन का विषय हमेशा से ज्वलंत रहा है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस कदम से सामाजिक आर्थिक और पर्यावर्णीय असर होगा. खनन से जंगल और आदिवासी जनसंख्या प्रभावित होगी. भूमि और लोगों के अधिकारों जैसे कई मुद्दे हैं, जिन्हें हल करने की जरूरत है. हमने जल्दबाजी न करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा कि एक सर्वे होना चाहिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस कदम से राज्य के लोगों को फायदा होगा या नहीं. इसलिए हमें इससे लड़ने की जरूरत है.

सोरेन ने कहा कि इतने वर्षों बाद नई प्रक्रिया अपनाई गई है और इस प्रक्रिया से प्रतीत होता है कि हम फिर उस पुरानी व्यवस्था में जाएंगे, जिससे बाहर निकले थे. उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था से यहां रह रहे लोगों को खनन कार्य में अब भी अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है. विस्थापन की समस्या उलझी हुई है.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले ही केंद्र सरकार से मामले में जल्दबाजी न करने का आग्रह कर चुकी है लेकिन केंद्र सरकार की ओर से ऐसा कोई आश्वासन प्राप्त नहीं हुआ, जिससे लगे कि पारदर्शिता बरती जा रही है.

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘कोयला खदानों की नीलामी से पूर्व राज्यव्यापी सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण होना चाहिए था, जिससे पता चल सकता था कि कोयला खनन से यहां के लोग लाभान्वित हुए या नहीं और यदि नहीं हुए तो क्यों नहीं हुए? यह बड़ा विषय था, लेकिन केंद्र सरकार ने जल्दबाजी दिखाई है.’

उन्होंने कहा, ‘आज पूरी दुनिया लॉकडाउन से प्रभावित है. भारत सरकार कोयला खदानों की नीलामी में विदेशी निवेश की भी बात कर रही है जबकि विदेशों से आवागमन पूरी तरह बंद है.

झारखंड की अपनी स्थानीय समस्याएं हैं. आज यहां के उद्योग धंधे बंद पड़े हैं. ऐसे में कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया राज्य को लाभ देने वाली प्रतीत नहीं होती है.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इससे पहले 10 जून को सोरेन ने केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी को पत्र लिखकर सतत खनिज विकास सुनिश्चित करने के लिए छह से नौ महीने के लिए प्रस्तावित खनन पर स्थगन का अनुरोध किया था.

सोरेन ने कहा कि लोगों को पता है कि केंद्र सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है. उन्होंने कहा, ‘व्यापारियों का समूह देश को जकड़ रहा है और आज इस शोर-शराबे के बीच में इस तरह कार्य को करना, ये वही बात हो गई कि गांव में आग लगी है और लोग सामान लेकर भाग रहे हैं. हमारा विरोध है कि केंद्र सरकार आगे न बढ़े.’

उन्होंने आगे कहा कि सरकार की सबसे बड़ी चुनौती प्रवासियों को राहत मुहैया कराना है.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 18 जनू को 41 कोयला ब्लॉक के वाणिज्यिक खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की. इस कदम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है.

इस दौरान मोदी ने कहा था, ‘वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए निजी कंपनियों को अनुमति देना चौथे सबसे बड़े कोयला भंडार रखने वाले देश के संसाधनों को जकड़न से निकालना है.’

ऐसा कहा जा रहा है कि कोयला खदानों की वाणिज्यिक खनन के लिए नीलामी से देश में अगले पांच से सात साल में 33,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत निवेश की उम्मीद है.

इसके बाद कोयला क्षेत्र से जुड़े श्रमिक संगठनों ने सरकार के फैसले के विरोध में कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) में दो जुलाई से तीन दिन की देशव्यापी हड़ताल पर जाने का निर्णय करते हुए बारे में नोटिस दिया है. हड़ताल होने पर करीब 40 लाख टन उत्पादन का नुकसान हो सकता है.

श्रमिक संगठनों की प्रमुख मांगों में कोयला खदानों में वाणिज्यिक खनन के लिए नीलामी पर रोक, कोल इंडिया की परामर्श इकाई सीएमपीडीआईएल के कंपनी से अलगाव पर रोक, संविदा कर्मचारियों को उच्च शक्ति प्राप्त समिति द्वारा तय वेतन को देना और एक जनवरी 2017 से 28 मार्च 2018 के बीच सेवानिवृत्त लोगों के लिए ग्रेच्युटी राशि को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये किया जाना शामिल है.

केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के नौ सरपंचों ने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खनन नीलामी पर गहरी चिंता जाहिर की है और कहा था कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.

ग्राम प्रधानों ने कहा था कि एक तरफ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ खनन की इजाजत देकर आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों की आजीविका, जीवनशैली और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ/ साभार : द वायर)

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