भाषा की दिक्कत के कारण बस्तर में हो खंडपीठ

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जगदलपुर.

भाषा संबंधी दिक्कतों के कारण बस्तर में उच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापित करना बेहद जरुरी है. इसके साथ ही दूरी संबंधी दिक्कत भी प्रमुख कारण है. यह कहना है बस्तर जिला अधिवक्ता संघ का जिसके द्वारा आज न्यायालय परिसर में पत्रकार वार्ता ली गई.

पत्रकार वार्ता में लगभग आधे दर्जन बिन्दुओं पर संघ के अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों ने बस्तर में खंडपीठ की आवश्यकता क्यों है और बस्तर की जनता को इसके नहीं होने पर क्या परेशानियाँ हो रही हैं के संबंध में जानकारी दी. संघ के अध्यक्ष आशुतोष द्विवेदी ने बताया कि बस्तर संभाग, आदिवासी बहुल क्षेत्र है. यहाँ के निवासियों के पास कृषि के अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है.

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बस्तर से दूर है बिलासपुर
द्विवेदी सहित उपस्थित अधिवक्ताओं ने बताया कि बस्तर से बिलासपुर दूर है. संभाग के अन्य जिलों से उच्च न्यायालय बिलासपुर तक की औसतन दूरी लगभग 425 किलोमीटर की है. अंदरूनी क्षेत्र से पक्षकारों को जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए एक से दो दिन का समय लग जाता है. बिलासपुर उच्च न्यायालय जाकर वहां से वापस आने में चार से पांच दिन लगते हैं. बस्तर के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण जहां एक ओर आवागमन व्यय काफी तकलीफदायक हो जाता है, वहीं दूसरी ओर समय भी लगता है.

दुभाषिए का खर्च उठाना पड़ता है 
अधिवक्ताओं ने भाषा संबंधी परेशानियों को लेकर बताया कि बस्तर संभाग के अलग-अलग हिस्सो में हल्बी, गोंडी अथवा भतरी भाषा बोली जाती है. इन ग्रामीणों को हिंदी अथवा अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है. भाषा संबंधी दिक्कत के चलते दुभाषिए व्यक्ति को अपने साथ ले जाना पड़ता है. उसका अतिरिक्त व्यय भी वहन करना होता है. इन सब विषम परिस्तिथियों और बस्तर अंचल के लोगों के हित में उच्च न्यायालय के खंडपीठ की स्थापना अतिआवश्यक है. पत्रवार्ता के दौरान बस्तर जिला अधिवक्ता संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष परमजीत मोहना, सचिव नवीन कुमार ठाकुर, सह-सचिव पवन राजपूत, कोषाध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ठाकुर, एवं ग्रंथपाल विपुल श्रीवास्तव सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे.

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