पुलिसकर्मियों की पदोन्नति में क्यों होता है भेदभाव ?

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जबलपुर.

पुलिसकर्मियों की पदोन्नति में आखिरकर क्यों भेदभाव किया जाता है इसका जवाब प्रदेश के उच्च न्यायालय ने सरकार से मांगा है. एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट के समक्ष यह मसला उठा था कि आईपीएस अधिकारियों के लिए एक समयबद्ध पदोन्नति योजना है जबकि निचले स्तर के पुलिस अधिकारी-कर्मचारी पद रिक्त होने पर ही पदोन्नत हो पाते हैं.

उल्लेखनीय है कि इस याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय यादव एवं जस्टिस विजय शुक्ला की खंडपीठ में हुई. कोर्ट ने अब राज्य सरकार से रपट मांगी है. मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को तय की गई है.

हरियाणा का उदाहरण बताया

मामला दरअसल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जुड़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वह पुलिस सुधार पर स्वयं संज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर करे.

इस पर अप्रैल 2019 में हाई कोर्ट की निगरानी में एक याचिका दायर की गई. पदोन्नति के अलावा पुलिस सुधार के अन्य विषय इस याचिका में शामिल किए गए.

कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एमए खान, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी उत्तम चौकसे ने पुलिसकर्मियों को पदोन्नति में भेदभाव झेलने के संबंध में एक जनहित याचिका अलग से दायर की.

इन्हीं याचिकाओं की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अजय रायजादा ने प्रदेश में आईपीएस अधिकारियों के प्रमोशन के लिए समयबद्ध योजना संचालित किए जाने की ओर ध्यान आकृष्ट किया.

उन्होंने हाई कोर्ट को बताया कि प्रदेश में एक आईपीएस को डीआईजी के पद पर चौदह साल की सेवा के बाद प्रमोट किया जाता है. इसी तरह आईजी के पद पर प्रमोशन के लिए 18 साल की सेवा तय की गई है.

अधिवक्ता रायजादा ने कोर्ट के समक्ष यह भी कहा कि एडीजीपी के लिए 26 और डीजीपी के पद पर प्रमोट होने के लिए 30 साल की सेवा की पात्रता रखी गई है. इसके ठीक उलट सिपाही से लेकर निरीक्षक तक के पदों के लिए ऐसी कोई योजना पदोन्नति को लेकर नहीं बनाई गई है.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 के आंकड़ों पर गौर करें तो मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या एक लाख 15 हजार 726 थी. इनमें से 98 हजार 466 पद ही भरे हुए थे. आश्चर्यजनक बात यह है कि प्रदेश में एक लाख की जनता पर कुल जमा 112 पुलिसकर्मी ही तैनात हैं.

हरियाणा सरकार का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि प्रमोशन के लिए बनाई गई स्कीम से वहां सभी लाभान्वित हो रहे हैं. सिपाही से प्रधान आरक्षक के पद पर बारह साल की सेवा के बाद पदोन्नति हो जाती है.

सहायक उपनिरीक्षक से उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नति के लिए 22 साल व उपनिरीक्षक से निरीक्षक पद पर पदोन्नति के लिए 30 साल की न्यूनतम सेवा की पात्रता हरियाणा में तय कर रखी है.

राज्य सरकार की ओर से उसके महाधिवक्ता शशांक शेखर ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने विशेष पुलिस महानिदेशक प्रशिक्षण की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की है. 5 अक्टूबर को गठित हुई इस कमेटी में दस सदस्य शामिल किए गए हैं.

कमेटी के पास जिम्मेदारी है कि वह पुलिस सुधार से जुड़े विभिन्न विषयों का परीक्षण कर उनके निराकरण के उपाय बताने सहित पदोन्नति के विषय पर सरकार को रपट करे. हाईकोर्ट ने इस पर सरकार से कमेटी की रपट स्वयं के समक्ष प्रस्तुत करने के भी निर्देश दिए हैं.

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