जिसके कार्यकाल में कांग्रेसी पिटे, उसके सिर राजधानी का ताज…क्यूं?

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रायपुर.

पुलिस अधीक्षकों की नई तबादला सूची के साथ ही भूपेश सरकार की कार्यशैली ने चौंका दिया है. महज 10 नामों वाली इस सूची में दो नाम ऐसे हैं जिन्हें लेकर सवाल जायज हैं.

पहला कि आखिर क्यूं नीथू कमल को 54 दिन के कार्यकाल के बाद ही राजधानी से विदा कर दिया गया?

दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये कि, बिलासपुर के उस पुलिस अधीक्षक को रायपुर क्यूं लाया गया जिसके कार्यकाल के दौरान कांग्रेसियों को डंडे खाने पड़े थे?

ऐसी स्थिति में सरकार का यह आदेश उन कांग्रेसियों के लिए पीड़ादायक साबित होगा जिन कांग्रेसियों ने लाठी-डंडे खाकर न तो कांग्रेस छोड़ी और न ही सरकार बनाने की उम्मीद.

बावजूद इसके भूपेश सरकार की कार्यशैली कांग्रेसी विचारधारा के विपरित जाती दिखाई दे रही है. एक ओर आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन और हित के संरक्षण की कसमें खाई जातीं हैं तो दूसरी ओर निर्दोष आदिवासियों का कथित तौर पर एनकाऊंटर करवाने वाले पुलिस अफसर को और भी ताकतवर बना दिया जाता है. ईओडब्लू आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी इसका उदाहरण हैं.

यहां तक कि, सरकार यह भी भूल जाती है कि पूर्ववर्ती सरकार के दौरान इन्हीं अफसरों ने उन्हें किस हद तक बेइज्जत किया था. अफसोस कि भूपेश बघेल से जिस कार्यशैली की उम्मीद लगाई गई थी वो महज एक सपना था.

याद करिए.. आईपीएस अफसर मुकेश गुप्ता और राज्य की प्रथम सरकार का कार्यकाल. उस दौरान रायपुर एसपी रहे मुकेश गुप्ता एक विवाद में फंस गए थे. दरअसल नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय की टांग तोडऩे वाले लाठीचार्ज में गुप्ता का नाम उछला था.

इसके बाद आई भाजपा की सरकार के शुरुआती दिनों में आईपीएस मुकेश गुप्ता को नाको चने चबाने पड़े थे. तकरीबन पांच साल के बाद ही मुकेश गुप्ता भाजपा सरकार का विश्वास जीत पाए थे.

लेकिन इस कांग्रेस सरकार में ऐसा नहीं है. महज पांच महिनों के बाद कांग्रेस सरकार ने उस लाठी को भूला दिया है जो कि उसके कार्यकर्ताओं पर कहर बनकर बिलासपुर में टूटी थी. तब एसपी शेख आरिफ हुआ करते थे.

उस समय उन पर किसी तरह की कार्रवाई तब की भाजपा सरकार ने नहीं की थी. सरकार बदली तो लगा कि शेख आरिफ के दिन अब बदल जाएंगे. भूपेश सरकार ने जब उन्हें बिलासपुर से हटाया था तो यह विश्वास हो गया था कि आरिफ को आने वाले दिनों में परेशानी झेलनी पड़ेगी.

लेकिन… दिनांक 18 फरवरी 2019 की वह रात जिस रात ने शेख आरिफ की किस्मत ही बदल दी. कहां तो उन्हें लूप लाईन में डाले जाने की उम्मीद थी और कहां वह राजधानी रायपुर के एसपी बनकर आ गए हैं.

इससे ऐसा लगता है कि सरकार बदली है लेकिन तरीके वही है. नौकरशाही पर भरोसा भी वही है. ये वही भरोसा जान पड़ता है जिसने 2018 के चुनावों में भाजपा की नैया डूबो दी.

इसके अलावा भी कुछ सवाल हैं जिनके जवाब जरुरी जान पड़ते हैं कि..

  1. 54 दिनों में ही राजधानी से क्यूं हटा दी गई एसपी नीथू कमल?
  2. थोड़े दिनों में ही डीआईजी पद पर प्रमोट होने वाले हैं रायपुर के नए एसपी शेख आरिफ. इसके बावजूद इन्हें रायपुर की जिम्मेदारी क्यूं सौंपी गई?
  3. बिलासपुर में पुलिस अधीक्षक शेख आरिफ के कार्यकाल के दौरान कांंग्रेसियों को पीटे जाने के बावजूद अब इन्हें राजधानी का जिम्मा सौंप दिया गया है..इससे बिलासपुर के कांग्रेसी कार्यकर्ता क्या महसूस कर सकते हैं? क्या इस मामले में एसपी शेख आरिफ की नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती?
  4. क्या सरकार के पास राजधानी के लिए कोई और योग्य अफसर नहीं है?

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