रिटायर्ड आईएएस अशोक अग्रवाल परेशानी में

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रायपुर.

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से समयपूर्व सेवानिवृत्त हो गए अशोक अग्रवाल परेशानियों में घिर सकते हैं. दरअसल उनके खिलाफ भू अभिलेख अधीक्षक रहे ओंकारनाथ द्विवेदी ने उच्चस्तरीय शिकायत की है.

द्विवेदी को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था. वह कोरबा कलेक्टोरेट में वर्ष 2003 से पदस्थ थे. नक्शाविहीन गांवों को सर्वे व नक्शा निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ शासन के निर्देश पर दो दल गठित किए गए थे. दल क्रं.1 का प्रभारी द्विवेदी को बनाया गया था. दल क्रं.2 का प्रभारी तहसील कटघोरा एवं पाली का सीडी जांगड़े को बनाया गया था.

गौरव द्विवेदी हुआ करते थे कलेक्टर

आवेदक द्विवेदी ने शिकायत में लिखा है कि उस समय गौरव द्विवेदी कोरबा के कलेक्टर हुआ करते थे. उन्हीं के आदेश पर सर्वे कार्य शुरू हुआ था. अंतिम चरण में जब कार्य पहुंचा था तब अशोक अग्रवाल कोरबा कलेक्टर हो गए थे. मामला तब का ही है.

शिकायत के मुताबिक अशोक अग्रवाल ने द्विवेदी को जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए नवपदस्थ भू अभिलेख अधीक्षक जेपी सिंह को दायित्व सौंप दिया था. 29 अगस्त 2009 को बिना किसी सूचना और स्पष्टीकरण के संभाग आयुक्त बिलासपुर को प्रतिवेदन भेजकर आवेदक को निलंबित कर दिया गया था.

शिकायत बताती है कि 29 सितंबर 2009 को झूठ एवं मनगढ़त आरोप लगाकर विभागीय जांच संस्थित कर दी गई थी. राजस्व सचिव को इसके बाद आवेदन प्रस्तुत किया गया. 26 मई 2010 को राजस्व सचिव ने द्विवेदी को रिस्टेट करते हुए जांजगीर चांपा में पदस्थ कर दिया.

इसके बाद के घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है कि कैसे उन्हें बालको पुलिस ने अपनी अभिरक्षा में रखा? कैसे प्रतिवेदन को बिना संज्ञान में लिए उन्हें अनवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया? कैसे कोरबा के अनुविभागीय अधिकारी दोषी पाए गए? कैसे भूखंड के क्रय विक्रय की अनुमति कलेक्टर द्वारा दी गई? भू अभिलेख अधीक्षक द्वारा 80 से अधिक नामांतरण कैसे कराए गए?

द्विवेदी के मुताबिक उन्होंने उक्त भूखंड की चौहद्दी पर आपत्ति की थी. इसके बावजूद उन्हें सेवा में नहीं लिया गया जबकि न्यायालय ने उन्हें उन्मुक्त करने का आदेश पारित किया था.

अपनी शिकायत में द्विवेदी ने आगे लिखा है कि बगैर किसी दोष के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा उन्हें आर्थिक, मानसिक, शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया गया. मौलिक अधिकार छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 की धाराओं एवं दंड प्रक्रिया संहिता का वे इसे घोर उल्लंघन बताते हैं. उन्होंने अनुरोध किया है कि प्रकरण की पुन: जांच कर उन्हें न्याय प्रदान किया जाए.

इस विषय पर अशोक अग्रवाल से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई.

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