बंद हुआ ट्रांजिस्ट हॉस्टल, सताने लगा मौत का खौफ

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रायपुर/जगदलपुर।
बीते कुछ दिनों पहले बस्तर में आईजी की कमान बदलने के बाद आत्मसमर्पण कर चुकी एक महिला नक्सली की हत्या के बाद बस्तर में एक बार फिर से नक्सली हलचल तेज हो गई है. साथ ही ट्राजिस्ट हॉस्टल के बंद कर दिए जाने के बाद आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों खास तौर पर महिला माओवादियों पर खतरा मंडराने लगा है.
इतना ही नहीं आत्मसमर्पण करने के बाद जिन्हें कुछ प्रावधानों के चलते गोपनीय सैनिक बना दिया गया है, उनकी जान अब भी खतरों से खाली नहीं है.
हालांकि सुरक्षा से जुड़े आलाअधिकारी सब कुछ सामान्य होने की बात कह रहे हैं, लेकिन बस्तर के हालातों को देख रहे लोग इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं. आने वाले समय में नक्सल ऑपरेशन को एक बड़ा झटका लगने की उम्मीद जताई जा रही है.
छत्तीसगढ के बस्तर में तीन दशक से पनप रहे नक्सलवाद के खात्मे की उम्मीद बीते दो सालों से जगने लगी थी. जिस तरह के हालात नजर आ रहे थे, उससे माना जाने लगा था कि बस्तर में जल्द ही नक्सलवाद की सांसें थम जाएगी. लेकिन प्रशासनिक और राजनैतिक स्तर पर हुए फेरबदल और कुछ हालातों के चलते अब नक्सलवाद एक बार फिर सिर उठाने लगा है.
दरअसल इन सबके पीछे जहां बस्तर में पुलिस की कमान बदलने को एक वजह माना जा रहा है. तो वहीं दूसरी तरफ कुछ कोशिशों के बाद पुलिस के प्रति जो विश्वास नक्सलवाद से प्रभावित इलाके के लोगों का जागा था वह फिर से धूमिल होते नजर आ रहा है.
नक्सल उन्मूलन के लिहाज से किए जा रहे प्रयासों को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब 9 फरवरी को जगदलपुर के ट्राजिस्ट हॉस्टल में एडीआरजी के एक जवान ने निजी कारणों के चलते आत्मसमर्पण कर चुकी महिला माओवादी फुलो की गोली मारकर हत्या कर दी थी. उसके बाद आनन-फानन में सुरक्षा महकमे ने ट्रांजिस्ट हॉस्टल को खाली कराते हुए हॉस्टल को सील कर दिया था. यहां जिले के आत्मसमर्पण कर चुके 55 महिला माओवादियों को रखा गया था.
इसके अलावा इसी परिसर में पुरूष माओवादी भी रह रहे थे, जो आत्मसमर्पण कर चुके हैं. इन्हें पुलिस ने गोपनीय सैनिक बना दिया था. उन सभी को आवास की सुविधा देते हुए यहां रखा गया था. समय-समय पर इन्होंने नक्सल ऑपेरशन के लिए जानकारी भी एकत्र की थी. लेकिन बदले हालातों के चलते इन्हें इनके घर का रास्ता दिखा दिया गया है.
सुरक्षा एजेसियों के इस निणर्य को बस्तर के लोग कतई अच्छा नहीं मान रहे हैं. माना जा रहा है कि इससे जहां उनकी जान को खतरा बढ़ गया है, तो वहीं काफी मुश्किलों के बाद पुलिस के प्रति बना विश्वास एक बार फिर टूटता हुआ नजर आ रहा है.
इन सबके बीच सुरक्षा महकमा भले ही इस तरह की बातों से इनकार कर रहा हो, लेकिन सतही तौर पर कहीं न कहीं बस्तर में चल रहा नक्सल ऑपरेशन काफी हद तक प्रभावित हो सकता है. बस्तर रेंज के प्रभारी डीआईजी पी सुंदरराज की ओर से सरेंडर करने वाले माओवादियों के लिए प्रावधान तो काफी गिनाए जा रहें हैं, सुरक्षा के मानदंडों का भी हवाला दिया जा रहा है, लेकिन सुरक्षा के सवाल पर माओवादियों की जिंदगी को निजी फैसला बताकर पूरे मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है.
समर्पण पर कांग्रेस ने उठाए सवाल
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के समर्पण को लेकर कांग्रेस ने सवाल खड़ा किया है. कांग्रेस ने कहा है कि सरकारी समर्पण करने वाले माओवादियों की तादाद एक हजार से ज्यादा बता रही है, जबकि यह तादाद 10 से भी कम है. माओवाद के संबंध में विधानसभा में जमकर बहस हुई. कांग्रेस विधायक भूपेश बघेल ने स्क्रिनिंग कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए सुरक्षा बलों द्वारा आत्मसमर्पण कराये जाने पर सवाल उठाए.
बघेल ने कहा कि सरकार ने 1210 माओवादियों के आत्मसमर्पण का दावा किया है, जबकि कमेटी की रिपोर्ट में 4 माओवादियों के समर्पण का जिक्र है. इसका मतलब ये हुआ की 1206 फर्जी थे. ये पूरा षड्यंत्र आत्मसमर्पण की राशि को लेकर किया गया है.
बघेल ने कहा कि बस्तर में जिसे चाहो आत्मसमर्पण करा लो और जिसे चाहो गोली मार की स्थिति बनी हुई है. उन्होंने कहा कि नक्सलवाद का दंश कांग्रेस ने झेला है. विधायक देवती कर्मा का जिक्र करते हुए कहा बघेल ने कहा कि जब देवती खाना बनाती थीं तब महेंद्र कर्मा दरवाजे पर बंदूक लेकर बैठते थे. जब महेंद्र कर्मा खाना खाते थे, तब देवती दरवाजे पर बंदूक लेकर बैठती थीं.

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