उपचुनाव लड़े बगैर छग का सीएम बनने वाले भूपेश पहले व्यक्ति

शेयर करें...

नेशन अलर्ट। रायपुर.

छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भले ही हैं लेकिन ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने उपचुनाव लड़े बिना यह पद प्राप्त किया है. उल्लेखनीय है कि प्रथम व द्वितीय व्यक्ति ऐसे थे जो मुख्यमंत्री निर्वाचित होने के बाद उपचुनाव लड़कर सदन के सदस्य बने थे.

प्रदेश को तीसरा मुख्यमंत्री मिल ही गया. कांग्रेस के खाते में आई बड़ी जीत का सेहरा भूपेश बघेल के सिर सजा. पार्टी ने उन्हें ही अब राज्य की कमान भी सौंप दी है. सूबे के नए मुखिया ओबीसी वर्ग से आते हैं. इसके साथ ही कांग्रेस ने किसान वर्ग को भी साध लिया है.

भूपेश बघेल की ताजपोशी की खबर लगते ही उनके निवास पर जश्न का माहौल रहा. उनका निवास दुर्ग जिले के भिलाई में हैं. उनके निवास पर सैकड़ों की संख्या में समर्थक मौजूद रहे. उनके समर्थकों ने जमकर आतिशबाजी कि और खुशियां मनाई. ये दौर तब से ही शुरु हो गया था जब उनके नाम का ऐलान भी नहीं हुआ था.

कांग्रेस को जि़ंदा किया
छत्तीसगढ़ में पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल 2013 में हार की हैट्रिक से मुर्छित हो चुकी कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुए. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 के परिणाम ने इनका कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा दिया है.
प्रदेश में कमजोर लग रही कांग्रेस के 90 में 68 सीटें जीतने के बाद सीएम पद के दावेदारों में भूपेश बघेल का नाम आगे रहा. भूपेश बघेल का छत्तीसगढ़ का नया सीएम बनने की अटकलें सबसे ज्यादा लगाई जाती रहीं और अब वे यहां के तीसरे मुख्यमंत्री हैं. आइए एक नजर डालते हैं बघेल के अब तक के सामाजिक और राजनीतिक सफर पर.

आक्रमकता से बनी पहचान
भूपेश बघेल का जन्म 23 अगस्त 1961 को दुर्ग जिले के पाटन तहसील में हुआ था. कुर्मी समाज में इनका खासा जनाधार देखने को मिलता है. तेज तर्रार राजनीति और बेबाक अंदाज के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल जाने जाते हैं. किसानों के मुद्दों पर आक्रामक कौशल के लिए वे काफी फेमस भी हैं.
साल 1985 में उन्होंने यूथ कांग्रेस ज्वॉइन किया. 1993 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो पहली बार पाटन विधानसभा से वे विधायक चुने गए. इसके बाद अगला चुनाव भी वे पाटन से ही जीते, जिसमें उन्होंने बीजेपी की निरुपमा चंद्राकर को हराया.

दिग्गी की सरकार में बने मंत्री
जब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार बनी, तो भूपेश बघेल कैबिनेट मंत्री बने. साल 1990-94 तक जिला युवा कांग्रेस कमेटी दुर्ग (ग्रामीण) के वे अध्यक्ष रहे. 1994-95 में मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गए.
साल 1999 में मध्य प्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री और साल 1993 से 2001 तक मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के डायरेक्टर की जिम्मेदारी भूपेश बघेल ने संभाली.
साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना और कांग्रेस की सरकार बनी तब जोगी सरकार में वे कैबिनेट मंत्री रहे. 2003 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो भूपेश को विपक्ष का उपनेता बनाया गया.
साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में पाटन से उन्होंने जीत दर्ज की. 2008 में बीजेपी के विजय बघेल से भूपेश चुनाव हार गए. फिर साल 2013 में पाटन से उन्होंने जीत दर्ज की. 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.

आलाकमान ने सौंपी जिम्मेदारी
तेज़तर्रार और आक्रामक छवि वाले नेता भूपेश बघेल को दिसंबर, 2013 में कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया. इस समय विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता हताश और निराश थे.

इसके बाद भूपेश बघेल ने सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोलकर कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने का काम किया. फिर राशन कार्ड में कटौती का मुद्दा हो या किसानों की धान खरीदी और बोनस का मुद्दा, वह नसबंदी कांड का विरोध हो या फिर चिटफंड कंपनियों के पीडि़तों के साथ खड़े होने का मामला, भूपेश ने कांग्रेस को सरकार के खिलाफ सड़क पर उतार दिया.

कथित भ्रष्टाचार के मामले एक के बाद एक उजागर किए, जिस तरह से उन्होंने शक्तिशाली नौकरशाहों को खुले आम चुनौती दी उससे राज्य में कांग्रेस की छवि बदली. हालांकि इस बीच जमीन घोटाले, एक मंत्री के सेक्स सीडी कांड को लेकर भूपेश सरकार के निशाने पर भी रहे.

जोगी को अलग कर दिखाया दम
अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की खऱीद फऱोख्त के मामले में जिस तरह से उन्होंने अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेता अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को घेरा और फिर अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित किया.
उसके बाद प्रदेश में यह धारणा बन गई कि भूपेश बघेल हिम्मत वाले नेता तो हैं. क्योंकि पहले कांग्रेस में दो गुट काम करते थे एक संगठन कांग्रेस और दूसरा जोगी कांग्रेस. कांग्रेस के दिग्गज नेता भी जोगी के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते थे.

जोगी, रमन आए थे उपचुनाव के सहारे

इसके पहले दो और मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ देख चुका है. अविभाजित मध्यप्रदेश से अलग होकर पृथक राज्य बना छत्तीसगढ़ तब कांग्रेस बहुल था. उस समय विद्याचरण शुक्ल व महेंद्र कर्मा जैसे तगड़े दावेदारों के स्थान पर कांग्रेस ने अजीत जोगी को मुख्यमंत्री चुना था.

जोगी जब मुख्यमंत्री चुने गए थे तब वह किसी सदन के सदस्य नहीं थे. अंतत: उन्होंने मरवाही से विधानसभा का उपचुनाव लड़ा और विधानसभा के सदस्य बने. तब रामदयाल उईके ने भाजपा के सदस्य होते हुए जोगी के लिए कुर्सी छोड़ी थी.

ऐसा ही हाल डॉ. रमन सिंह का भी रहा. 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 सीट पर जीत हासिल की थी. उस समय रमन सिंह प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे. चूंकि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था इस कारण जीत का श्रेय भी उन्हें ही दिया गया और वे मुख्यमंत्री चुन लिए गए.

तब प्रदीप गांधी जो कि पहली मर्तबा डोंगरगांव से विधायक चुने गए थे ने डॉ. रमन सिंह के लिए अपनी कुर्सी खाली की. इस सीट से उपचुनाव लड़कर डॉ. सिंह ने प्रदीप गांधी से हार चुकी गीता देवी सिंह को हराकर विधानसभा का रास्ता अख्तियार किया था.

हालांकि इसके बाद 2008 में डॉ. रमन सिंह डोंगरगांव सीट छोड़कर राजनांदगांव आ गए. 2008, 2013 व 2018 में राजनांदगांव सीट से लगातार तीन मर्तबा चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है. इसके पहले कोई विधायक लगातार तीन बार राजनांदगांव का विधायक नहीं रहा है.

अब आती है बात भूपेश बघेल की. वह छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री हैं. लेकिन वह एक मामले में जोगी व रमन सिंह से पृथक हैं. इस बार उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए चुनाव लड़ा और लड़वाया.

उनकी विधानसभा सीट पाटन से उन्हें 9 हजार 343 मतों से विजयश्री मिली है. छत्तीसगढ़ के वह पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने आम चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय किया.

chhattisgarhCMBhupeshBaghelCongress
Comments (0)
Add Comment