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निखिल की हार का कारण पूर्व महापौर हेमा देशमुख !

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नेशन अलर्ट/9770656789

राजनांदगाँव.

पूर्व महापौर हेमा देशमुख को काँग्रेस प्रत्याशी निखिल द्विवेदी की हार का सबसे बडा़ कारण बताया जा रहा है. इस पर अब बयानबाजी होने लगी है. हालाँकि श्रीमती देशमुख इसे जनता का जनादेश कहते हुए तर्क देती हैं कि पूरे छत्तीसगढ़ में काँग्रेस की हार हुई है.

दरअसल, राजनांदगाँव की हार को काँग्रेसी पचा नहीं पा रहे हैं. पहले भी भाजपा शासनकाल में यहाँ की जनता काँग्रेसी महापौर बना चुकी है.

इस मर्तबा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. केंद्र और राज्य के साथ शहर में भाजपा की ही सरकार होनी चाहिए यह कैंपेन असर कर गया.

ऊपर से महापौर रह चुकीं श्रीमती हेमा देशमुख के कार्यकाल की कथित गड़बडि़यों ने अपना खूब असर दिखाया. तभी तो सामान्य सीट से प्रत्याशी रहे निखिल के विरूद्ध ओबीसी नेता पूर्व महापौर – पूर्व साँसद मधुसूदन यादव ने भारी भरकम जीत हासिल की.

हेमा का अहँकार ले डूबा : हेमँत

वैसे निखिल द्विवेदी कोई खबर पसँद नहीं थे. वह युवाओं में लोकप्रिय हैं. उन्होंने कोरोना काल में सीधे सड़क पर उतर कर लोगों की तब मदद की थी जब अधिकाँश चेहरे ताली और थाली बजाने में लगे हुए थे.

इसके बावजूद निखिल हार गए. उन्हें महज 21 हजार 379 लोगों ने ही पसँद किया.

जबकि उनके प्रतिद्वंदी मधुसूदन यादव 62 हजार 517 लोगों के दिल जीतने में सफल रहे. मधु और निखिल के मध्य 41 हजार 138 मतों का अँतर रहा.

यह अँतर क्यूं और कैसे रहा इस पर अब खुलकर बात होने लगी है. पुराने काँग्रेसी हेमँत ओस्तवाल इसके लिए सीधे तौर पर हेमा देशमुख को जिम्मेदार ठहराते हैं.

हेमँत कहते हैं कि हेमा देशमुख की सत्ता के अहँकार में काँग्रेस पूरी तरह से डूब गई. उन्होंने जमीनी कार्यकर्ताओं की ओर कभी देखा ही नहीं.

हेमँत आगे कहते हैं कि हेमा के कार्यकाल में निगम में फूलछाप काँग्रेसियों के अलावा भाजपाई ठेकेदारों की ही पूछपरख होती रही थी. यह कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण है.

हेमा देशमुख ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व प्रभारी मँत्रीद्वय मोहम्मद अकबर व अमरजीत भगत से अपनी कथित नजदीकियों का अहँकार पाल रखा था. इस कारण उन्हें कँबल ओढ़कर घी पीने से फुर्सत ही नहीं मिली.

ओस्तवाल कहते हैं कि हेमा हाथी की मस्त चाल में चलती रहीं. जबकि कई मर्तबा उन्हें पत्रों और समाचार पत्रों के माध्यम से जगाने का काम किया गया जोकि असफल रहा.

उनके अनुसार आज हेमा देशमुख के पास अपने 5 साल के कार्यकाल की कोई उपलब्धि बताने नहीं है. आज ऐसे नेताओं को तमाम पदों से मुक्त करने की बारी है.

हेमँत कहते हैं कि काँग्रेस के प्रति ईमानदारी से निष्ठा रखने वाले जमीनी नेताओं का चयन करना पार्टी के हित में होगा. नहीं तो गिनती के ही कार्यकर्ता रह जाएंगे. यदि हार की जिम्मेदारी तय नहीं हुई तो फिर मोतीपुर के नेता के अखाड़े में ही कई काँग्रेसी नज़र आएंगे.

” नांदगाँव नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में काँग्रेस की हार हुई है. यह जनादेश है.”

  • श्रीमती हेमा देशमुख

पूर्व महापौर, राजनांदगाँव