कांग्रेस से क्‍यूं मोहभंग हो रहा ?

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नेशल अलर्ट/www।nationalert।in

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। यहां तक आते आते कई पुराने कांग्रेसियों का अपनी पार्टी से मोहभंग होने लगा है। अब सवाल इस बात का उठता है कि यह मोहभंग किन कारणों से हो रहा है और इसे‍किस तरह से थामा जा सकता है।

हालांकि अभी तक किसी भी स्‍तर पर क्रियाशील कांग्रेसियों ने पार्टी से किनारा नहीं किया है लेकिन जिन्‍होंने भी किया है वह नाम कहीं न कहीं वजन रखते हैं। विश्‍व आदिवासी दिवस के दिन इस खेमे के दिग्‍गज कांग्रेसी अरविंद नेताम ने कांग्रेस का गमछा उतार दिया था।

इसके दो दिन बाद ही पुराने कांग्रेसी रहे पूर्व विधानसभा उपाध्‍यक्ष धरमजीत सिंह के विषय में एक चर्चा सुनाई दे रही है। लोरमी से विधायक धरमजीत सिंह आने वाले दिनों में भाजपाई नेता के नाम से जाने जाएंगे। उन्‍होंनें आज दोपहर राजधानी रायपुर के भाजपा कार्यालय में पार्टी में प्रवेश कर लिया।

सिंह पहले कांग्रेस के विधायक रहे हैं। कांग्रेस शासनकाल में ही उन्‍होंने विधानसभा उपाध्‍यक्ष का दायित्‍व भी संभाला था। वह बोलने में माहिर हैं। तथ्‍यपरक बात करते हैं और लोगों को अपनी ओर खींचने का जादुई मंत्र उनकी भाषाशैली में शामिल हैं।

जोगी के बाद राह जुदा
जब अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़ी और छत्‍तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया तब उनके साथ सबसे बड़ा नाम धरमजीत सिंह का भी शामिल था। जोगी के आकस्मिक निधन के बाद उनके सुपुत्र अमित जोगी के साथ सिंह की पटरी नहीं बैठी।

किंतु परंतु के बाद उन्‍हें जनता कांग्रेस से निष्‍कासित कर दिया गया। उनके संदर्भ में कई मर्तबा यह बात सुनाई दी थी कि वह भाजपाई होने जा रहे हैं जो कि अब जाकर संभव हुआ है। पहले नेताम और अब सिंह के विरोधी खेमें में शामिल होने से कांग्रेस का चुनावी गुणाभाग प्रभावित हो सकता है।

नेताम ने तो कांग्रेस से किनारा कर अपना एक अलग दल गठित करने की घोषणा कर रखी है। पिछली मर्तबा इसी तरह की घोषणा जब जोगी ने की थी तो भाजपा सरकार की उल्‍टी गिनती प्रारंभ हुई थी। उस समय भाजपा महज 15 सीट जीत पाई थी।

अब जबकि आदिवासी वर्ग की राजनीति करने का बीड़ा उठाते हुए नेताम ने इस वर्ग के लिए आरक्षित 29 विधानसभा सीटों सहित कुल जमा 50 विधानसभा सीटों पर लड़ने की मंशा जाहिर की है तो यह कांग्रेस के लिए सोचनीय है।

अब बात धरमजीत की… सिंह मूलत: कांग्रेसी रहे हैं। इसके बावजूद वह जोगी कांग्रेस से निष्‍कासन के बाद अब भाजपाई गमछा ओढ़ने जा रहे हैं तो इसके भी गहन अर्थ है। क्‍या धरमजीत सिंह का मोह भी कांग्रेस से भंग हो गया था जो कि उन्‍हें अब भाजपाई खेमें में ले जा रहा है ?

दरअसल नेताम और सिंह जैसे नेताओं की पीड़ा कांग्रेस से नहीं बल्कि छत्‍तीसगढ़ कांग्रेस को चलाने वाले लोगों से ज्‍यादा जुड़ी हुई है। एक ने आदिवासी हितों की अनदेखी अनसुनी करने की बात कहते हुए किनारा किया है तो दूसरे ने बिना कुछ कहे छत्‍तीसगढ़ कांग्रेस से पटरी नहीं बैठने की ओर इशारा कर दिया है।

मतलब साफ है कि आने वाला समय छत्‍तीसगढ़ कांग्रेस के लिए फूंक फूंक कर कदम रखने का हो सकता है। यदि इसमें वह सफल रही तो उसे पुन: जीत का सेहरा पहनने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन यदि किंतु परंतु हुआ तो भाजपा जैसा दल मौके की तलाश में बैठा हुआ है।

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