सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना चाहती है सरकार

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रायपुर.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े 300 से अधिक किसानों और आदिवासियों के संगठनों के आह्वान पर कल संसद सत्र के पहले ही दिन 14 सितम्बर को पूरे प्रदेश में केंद्र-राज्य की किसान-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा। इसी दिन दिल्ली में समन्वय समिति से जुड़े संगठन हजारों की उपस्थिति वाले एक विशाल धरना का भी आयोजन करेंगे।

इस देशव्यापी किसान प्रदर्शनों के जरिये केंद्र सरकार से कृषि विरोधी अध्यादेशों और पर्यावरण आंकलन मसौदे को वापस लेने, कोरोना संकट के मद्देनजर ग्रामीण गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न और नगद राशि से मदद करने की मांग की जा रही है।

इसके अलावा मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, व्यावसायिक खनन के लिए प्रदेश के कोल ब्लॉकों की नीलामी और नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण रद्द करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने की मांग प्रमुख है।

उन्हें बैंकिंग तथा साहूकारी कर्ज़ के जंजाल से मुक्त करने, आदिवासियों और स्थानीय समुदायों को जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने के लिए पेसा कानून का क्रियान्वयन करने की मांग की जाएगी।

इसी तरह राज्य की कांग्रेस सरकार से भी सभी किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया खाद उपलब्ध कराने, बोधघाट परियोजना को वापस लेने, हसदेव क्षेत्र में किसानों की जमीन अवैध तरीके से हड़पने वाले अडानी की पर्यावरण स्वीकृति रद्द करने की मांग की जा रही है।

उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, किरंदुल की आलनार पहाड़ी को आरती स्पॉन्ज को न सौंपने, पंजीकृत किसानों के धान के रकबे में कटौती बंद करने, सभी बीपीएल परिवारों को केंद्र द्वारा आबंटित प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज वितरित करने, वनाधिकार दावों की पावती देने, हर प्रवासी मजदूर को अलग मनरेगा कार्ड देकर रोजगार देने और भू-राजस्व संहिता में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव न करने की भी मांग की जाएगी।

छत्तीसगढ़ में इन मुद्दों पर किसानों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले 25 संगठनों में एकता बनी है। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच प्रमुख है।

इसी तरह क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।

इन संगठनों ने ग्राम सभा के फ़र्ज़ीकरण के जरिये दंतेवाड़ा की आलनार पहाड़ को बेचे जाने के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष का समर्थन भी किया है। इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग करते हुए कहा है कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश आज गंभीर आर्थिक मंदी में फंस गया है।

इस मंदी से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि आम जनता की जेब मे पैसे डालकर और मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाकर उसकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए, ताकि बाजार में मांग पैदा हो। लेकिन इसके बजाए अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों और बिजली कानून में ऐसे परिवर्तन किए जा रहे हैं, जिससे फसल के दाम गिर जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी।

ये परिवर्तन पूरी तरह कॉर्पोरेटपरस्त और कालाबाज़ारी व जमाखोरी को बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि वास्तव में सरकार इन कदमों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना चाहती है। इससे देश की कृषि व्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। यह देश की संप्रभुता और खाद्यान्न आत्म-निर्भरता के लिए घातक होगा।

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