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भारतीय जनसंघ के संस्थापक और इसके पहले अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज 67वीं पुण्यतिथि है.
23 जून 1953 को उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी. भारतीय जनता पार्टी इस दिन को “बलिदान दिवस” के रूप में मनाती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुखर्जी को याद करते हुए ट्वीट किया है, “मां भारती के महान सपूत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी पुण्यतिति पर शत-शत नमन.”
डॉक्टर मुखर्जी अनुच्छेद 370 के मुखर विरोधी थे और चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने और वहां अन्य राज्यों की तरह समान क़ानून लागू हो.
अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने आज़ाद भारत में आवाज़ उठाई थी. उनका कहना था कि “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.”
33 साल की उम्र में बने कुलपति
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था, जो बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में जाने जाते थे.
कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद 1926 में सीनेट के सदस्य बने. साल 1927 में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की.
33 साल की उम्र में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति बने थे. चार साल के कार्यकाल के बाद वो कलकत्ता विधानसभा पहुंचे.
कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया और उसके बाद फिर से स्वतंत्र रूप से विधानसभा पहुंचे.यह माना जाता है कि वो प्रखर राष्ट्रवाद के अगुआ थे.
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री बनाया था. बहुत छोटी अवधि के लिए वो मंत्री रहे.
उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था. वो इस बात पर दृढ़ थे कि “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.”
वो चाहते थे कि कश्मीर में जाने के लिए किसी को
अनुमति न लेनी पड़े. 1953 में आठ मई को वो बिना अनुमति के दिल्ली से कश्मीर के लिए निकल पड़े.
दो दिन बाद 10 मई को जालंधर में उन्होंने कहा था कि “हम जम्मू कश्मीर में बिना अनुमति के जाएं, ये हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए.”
11 मई को वो श्रीनगर जाते वक़्त गिरफ्तार कर लिए गए. उन्हें वहां के जेल में रखा गया फिर कुछ दिनों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
22 जून को उनकी तबीयत खराब हो गई और 23 जून को उनका रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई.
जनसंघ का गठन
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कई मतभेद रहे थे. यह मतभेद तब और बढ़ गए जब नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ.
इसके समझौते के बाद छह अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर से परामर्श लेकर मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की, जिसका बाद में जनता पार्टी में विलय हो गया और फिर पार्टी के बिखराव के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ.
1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक मुखर्जी भी थे.
जब नेहरू ने मांगी माफ़ी
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व संपादक इंदर मल्होत्रा ने कुछ साल पहले बीबीसी को एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाया था, “श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे. जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया. उसके बाद उन्होंने जनसंघ की नींव डाली.”
“आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी. इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है.”
इस आरोप का नेहरू ने काफ़ी विरोध किया. इस बारे में इंदर मल्होत्रा ने बताया था, “जवाहरलाल नेहरू समझे कि मुखर्जी ने वाइन और वुमेन कहा है. उन्होंने खड़े होकर इसका बहुत ज़ोर से विरोध किया.”
“मुखर्जी साहब ने कहा कि आप आधिकारिक रिकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि मैंने क्या कहा है. ज्यों ही नेहरू ने महसूस किया कि उन्होंने ग़लती कर दी. उन्होंने भरे सदन में खड़े होकर उनसे माफ़ी मांगी.
तब मुखर्जी ने उनसे कहा कि माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है. मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मैं ग़लतबयानी नहीं करूँगा.”
( साभार : बीबीसी )