आईजी एसआरपी कल्लूरी… क्या खूब बोले.. उन्होंने सरकार की बखिया उधेड़ दी.. वो ये तक कह गए कि बस्तर से सालाना 1100 करोड़ की रकम वसूलते हैं नक्सली. उन्होंने ठेकेदारों, वन व नौकरशाहों को नक्सलियों की मदद करने का जिम्मेदार बताया है. अब सवाल इस बात का उठता है कि इसमें कहीं आप तो नहीं हैं?
दरअसल, एसआरपी कल्लूरी और सरकार के बीच इन दिनों एक लकीर सी खींची हुई है. साल की शुरुआत से यह लकीर कभी छोटी हो जाती है तो कभी लंबी. कभी कल्लूरी इस लड़ाई में जीतते नजर आते हैं तो कभी सरकार. कभी एसआरपी का डंका बजता है तो कभी सरकार का. इन सबके बीच सवाल दर सवाल हैं.
आयोग को लेकर की टीका-टिप्पणी
कल्लूरी जिस मानवाधिकार आयोग को लेकर बस्तर आईजी रहते हुए विवादों में आए थे उस पर ही उन्होंने टिप्पणी की है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर भी कल्लूरी ने बहुत कुछ कहा है. क्या कोई नौकरशाह इस तरह की टीका-टिप्पणी कर सकता है? क्या कल्लूरी बेलगाम हो गए हैं? क्या महकमे के मुखिया से मिली कारण बताओ नोटिस का कोई असर कल्लूरी पर नहीं हुआ है?
वर्ष 2004 से अपने आप को नक्सली क्षेत्र में काम करने वाला बताते हुए कल्लूरी बड़ी चालाकी से खुद के लिए सहानुभूति बटोर रहे हैं. उन्होंने एक मर्तबा यह तक कहा था कि उनके पास नक्सलियों को मदद पहुंचाने वालों के नाम हैं और इस पर कार्रवाई शुरु ही करने वाले थे कि उन्हें हटा दिया गया.
क्या वाकई ऐसा है?
यदि है तो कल्लूरी को वो नाम कम से कम विभाग के समक्ष सार्वजनिक करने चाहिए. और यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो यही माना जाएगा कि कल्लूरी साहब दबाव की राजनीति खेल रहे थे. बस्तर में हवाई जहाज से आने वालों को हवाई जानकारी रखने का उल्लेख करते हुए कल्लूरी साबह ने जो कुछ कहा उसके बहुत बड़े मायने हैं.
कल्लूरी अपने लिए सहानुभूति बटोरने के साथ-साथ विवादग्रस्त मसलों को उठाकर खुद को सुर्खियों में रखना चाहते हैं. यदि एक दिन कल्लूरी का नाम सुर्खियों से गायब होता है तो अगले ही दिन कुछ न कुछ ऐसा वो कर जाते हैं कि कई दिनों तक उसी पर माथा-पच्ची होती रहती है.
कल्लूरी का यह कहना कि मिनरल कांट्रेक्टर, ब्यूरोक्रेटस व फारेस्ट से नक्सली हर साल बस्तर में कई सौ करोड़ रुपए उगाह लेते हैं. यह सच है लेकिन इसके पीछे कड़वी सच्चाई भी छिपी है. क्या हर वन अमला नक्सलियों का मददगार है? क्या हर मिनरल कांट्रेक्टर अथवा ब्यूरोके्रटस नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचा रहा है? इस बात का सवाल उठेगा और इसका जवाब कल्लूरी साहब से ही पूछा जाएगा. क्यूंकि उन्होंने बस्तर को बहुत अच्छे से देखा है और वहां लंबे समय तक काम किया है.
यदि इसका जवाब देने में कल्लूरी हिचकिचाते हैं तो उन्हें यह कहने का हक कदापि नहीं है कि छत्तीसगढ़ की पुलिस मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के सामने कमजोर पड़ जाती है. उन्हें यह कहने का अधिकार किसी सूरत में नहीं मिल सकता है कि किसी की पगड़ी गिर जाती है तो बस्तर में अच्छा काम करने वाले अधिकारी हटा दिए जाते हैं.
तो क्या एसआरपी कल्लूरी को सरकार फिर कोई नोटिस देगी..? फिर उनसे कोई जवाब तलब किया जाएगा..? संभवत: ऐसा न हो लेकिन सरकार को अब कल्लूरी को नियंत्रित रखने के उपाय ढूंढने ही होंगे. यदि वह नहीं ढूंढ पाई तो उसके लिए बस्तर के साथ-साथ कल्लूरी सिरदर्द साबित होंगे.